Hindi Grammar class 9
Hindi Grammar class 9 का पाठ्यक्रम कई प्रतियोगी परीक्षाओं में सम्मिलित है। प्रस्तुत पोस्ट Class 9 के विद्यार्थियों के लिए भी महत्वपूर्ण है, साथ ही विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले परीक्षार्थियों के लिए भी लाभदायी सिद्ध होगा।
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Hindi Grammar के पाठ्यक्रम की अध्ययन सामग्री को हम अत्यंत सरल व बोधगम्य तरीके से साझा करते हैं।
पिछले पोस्ट में हमने Hindi Grammar का परिचय देते हुए उसके प्रमुख अंगों का ज्ञान समाहित किया था। इसी क्रम में प्रस्तुत लेख में हम शब्द निर्माण का विस्तार से अध्ययन करेंगे।
तो आइए आज हम Hindi Grammar Class 9 के अंतर्गत शब्द निर्माण में सहायक उपसर्ग, प्रत्यय तथा समास का ज्ञान प्राप्त करेंगे।
शब्द निर्माण
अक्षरों के सार्थक समूह को शब्द कहते हैं। जैसे – भ् + ओ + ज् + अ + न् + अ = भोजन।
वाक्य का निर्माण करते समय हम अनेक शब्दों का प्रयोग करते हैं। हिन्दी के कुछ शब्द इस प्रकार हैं जैसे – लड़का, घोडा, किताब, कलम, मेज, कुर्सी, पलंग, हाथी आदि।
शब्द की परिभाषा हम इसप्रकार दे सकते हैं –
“शब्द भाषा की स्वतंत्र इकाई हैं। अर्थात शब्दों का प्रयोग भाषा में स्वतंत्र रूप से किया जा सकता है।“
“शब्द भाषा की सार्थक इकाई हैं। केवल अर्थवान तथा सार्थक इकाइयां ही शब्द कहलाती हैं। जैसे –
‘कलम’ व ‘कमल’ दोनों सार्थक शब्द हैं। किन्तु ‘मकल’ व ‘लकम’ शब्द नही हैं भले ही उन्हीं ध्वनियों से बने हों।
हर भाषा में असीमित शब्द होते हैं, जो किसी न किसी भाव या विचार को व्यक्त करते हैं। हर भाषा में शब्दों का भंडार होता है।
लेकिन सभी शब्द एक ही प्रकार के नही होते। कुछ शब्द वस्तुओं, व्यक्तियों या स्थान आदि के नामों को बताते हैं।
जैसे – किताब, कुर्सी, शीला, सीता, आगरा, दिल्ली, कानपुर, बच्चा, बूढ़ा आदि (संज्ञा शब्द)।
कुछ शब्द क्रियाओं व कार्यों को प्रकट करते हैं, जैसे – सोना, खाना, चलना, पढ़ना, लिखना आदि (क्रिया शब्द)।
अन्य शब्द जो क्रिया या संज्ञा का बोध कराते तथा विशेषता बताते हैं जैसे – छोटा, बड़ा, लंबा, अच्छा, बुरा, सुंदर, साफ, काला, गोरा आदि (विशेषण शब्द)।
आज, कल, तेजी से, धीरे धीरे आदि ( क्रिया विशेषण)।
शब्द निर्माण की प्रक्रिया तीन प्रकार से हो सकती है –
उपसर्गों के द्वारा (1)
प्रत्ययों के द्वारा (2)
समास प्रक्रिया द्वारा (3)
उपसर्ग (1)
उपसर्ग भाषा के वे सार्थक लघुतम खंड हैं, जो शब्द के आरंभ में लगकर नए नए शब्दों का निर्माण करते हैं।
जैसे – अन् + आदर = अनादर
वि + नाश = विनाश
सु + योग = सुयोग
बे + ईमान = बेईमान
प्र + हार = प्रहार
हिन्दी में तीन प्रकार के शब्द मिलते हैं : तत्सम, तद्भव तथा अन्य भाषाओं से आगत विदेशी शब्द।
इन तीनों कोटियों के शब्दों में मूल शब्द भी है, जैसे – कर्म (तत्सम), काम (तद्भव) तथा ईमान, रेल (विदेशी)।
इनके अतिरिक्त यौगिक या व्युत्पन्न शब्द भी जो मूल शब्दों में उपसर्ग या प्रत्यय जोड़कर बनाए जाते हैं। इस दृष्टि से हिन्दी में तीनों ही प्रकार के उपसर्ग प्राप्त होते हैं।
तत्सम उपसर्ग
यह वे उपसर्ग हैं, जो संस्कृत से हिन्दी में आ गए हैं। संस्कृत में 22 उपसर्ग हैं। इन उपसर्गों से बने अनेक शब्द हमें हिन्दी में मिलते हैं।
कुछ शब्दों के उदाहरण दिए जा रहे हैं –
उपसर्ग | अर्थ | उदाहरण |
अति | अधिक | अत्यंत, अत्याचार, अतिरिक्त, अतिक्रमण, अतिशय, अत्यधिक |
अधि | ऊपर, श्रेष्ठ | अधिकार, अधिनायक, अधिकरण, अध्यादेश, अध्यक्ष, अधिशुल्क, अधिपति |
अनु | पीछे, बाद में आने वाला | अनुभव, अनुभूति, अनुकरण, अनुरोध, अनुशासन, अनुवाद, अनुरूप, अनुसार |
अप | बुरा, हीन | अपयश, अपमान, अपव्यय, अपशब्द, अपकार, अपहरण, अपवाद, अपशकुन, अपकीर्ति |
अभि | सामने, ओर | अभिनय, अभिमुख, अभिज्ञान, अभिमान, अभ्यास, अभियोग, अभिनव, अभिलाषा, अभिशाप, अभ्यागत, अभियान |
अव | बुरा, हीन, उप | अवसान, अवसर, अवकाश, अवनति, अवगुण, अवशेष, अवतरण, अवतार, अवज्ञा |
आ | तक, समेत | आहार, आक्रमण, आजीवन, आजन्म, आकर्षण, आगमन, आमरण, आदान, आरक्षण |
उत् | ऊपर, श्रेष्ठ | उत्थान, उद्गम, उन्नति, उद्योग, उच्चारण, उल्लंघन, उद्देश्य, उत्तम, उद्घाटन, उत्कर्ष |
उप | निकट, छोटा | उपवन, उपकार, उपस्थित, उपदेश, उपग्रह, उपचार, उपनाम, उपसर्ग, उपकृत, उपनगर। |
परा | विपरीत, नाश | पराजय, पराभव, पराक्रम, परामर्श, पराधीन, पराभूत, परास्त |
प्रति | विरुद्ध, सामने | प्रतिद्वयनी, प्रतिकूल, प्रतिनिधि, प्रत्यक्ष, प्रतिवादी, प्रतिदिन, प्रतिकार, प्रतिष्ठा, प्रतिरूप, प्रतिरोध |
तद्भव उपसर्ग
तद्भव उपसर्ग मूलत: संस्कृत के (तत्सम) उपसर्गों से ही विकसित हुए हैं। इन्हीं को हिन्दी उपसर्ग भी कहा जाता है।
कुछ प्रमुख तद्भव उपसर्ग इस प्रकार हैं –
उपसर्ग | अर्थ | उदाहरण |
अ / अन | अभाव, निषेध | अनजान, अनपढ़, अनहोनी, अनबोल, अछूत, अथाह, अनबन, अचेत, अनमोल |
उन | कम | उनचास, उनसठ, उनहत्तर, उनतालीस |
औ | हीन | औगुन, औघट, औतार |
क / कु | बुरा | कपूत, कुचाल, कुढंग, कुसंगति |
नि | रहित | निहत्था, निडर |
पर | दूसरी पीढ़ी | परदादा, परपोता, परनाना |
सु | अच्छा | सपूत, सुडौल, सुजान, सुघड़ |
अध | आधा | अधजला, अधपका, अधमरा, अधकचरा |
दु | बुरा, हीन | दुबला, दुलारा, दुधारू, दुसाध्य |
बिन | बिना | बिनब्याही, बिनजाने, बिनखाए, बिनमागें |
चौ | चार | चौपाई, चौपाया, चौराहा, चौकन्ना, चौमासा |
आगत (विदेशी) उपसर्ग
जो उपसर्ग विदेशी भाषाओं से हिन्दी में आ गए हैं उन्हें विदेशी उपसर्ग कहते हैं। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं –
उपसर्ग | अर्थ | उदाहरण |
ब | के साथ, से | बखूबी, बदौलत, बगैर, बनाम |
बा | साथ, से | बाकायदा, बाअदब, बावजूद |
बे | बिना | बेअदब, बेरहम, बेगुनाह, बेचैन, बेईमान, बेवफा, बेघर, बेहोश, बेसमझ |
बद | बुरा | बदनाम, बदमाश, बदतमीज, बदचलन, बदकिस्मत, बदसूरत |
खुश | अच्छा | खुशबू, खुशकिस्मत, खुशहाल, खुशनसीब, खुशमिजाज, खुशदिल |
ना | अभाव | नालायक, नाकारा, नाराज, नासमझ, नाउम्मीद, नाबालिग, नापसंद |
गैर | भिन्न | गैरहाजिर, गैरकानूनी, गैरसरकारी, गैरजरूरी, गैरजिम्मेदार |
ला | नही, अभाव | लाइलाज, लाजवाब, लापरवाह, लावारिस, लापता |
हम | आपस में, साथ | हमराज, हमउम्र, हमदर्द, हमदम, हमशक्ल, हमराह, हमजोली, हमवतन, हमनाम |
हर | प्रत्तेक | हरवक्त, हरहाल, हरदिल, हररोज, हरघड़ी, हरतरफ, हरएक |
कम | थोड़ा | कमउम्र, कमजोर, कमअक्ल, कमबख्त, कमसमझ |
दर | में | दारगुजर, दरअसल, दरमियान, दरकार |
सर | मुख्य | सरपंच, सरताज |

प्रत्यय (2)
भाषा के वे लघुतम सार्थक खंड जो शब्द के अंत में जुड़कर नए – नए शब्दों का निर्माण करते हैं, प्रत्यय कहे जाते हैं।
हिन्दी के प्रत्यय
ये प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं – रूप साधक प्रत्यय, शब्द साधक प्रत्यय
रूप साधक प्रत्यय
हिन्दी में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया के विभिन्न रूपों की रचना ‘रूप साधक’ प्रत्ययों से होती है।
संज्ञाएँ – लिंग, वचन, कारक
सर्वनाम – पुरुष, वचन, कारक
क्रियाएं – काल, पक्ष, वृत्ति, वाच्य आदि के लिए रूप परिवर्तित करती हैं।
शब्द साधक प्रत्यय
हिन्दी में तत्सम, तद्भव तथा विदेशी तीनों ही प्रकार के प्रत्यय मिलते हैं, जो नए नए शब्दों की रचना में काम आते हैं, जैसे –
आवश्यक + ता = आवश्यकता
भूल + अक्कड़ = भुलअक्कड़
त्याग + ई = त्यागी
परीक्षा + क = परीक्षक
संस्कृत प्रत्यय
संस्कृत में दो प्रकार के प्रत्यय होते हैं – कृत प्रत्यय, तद्धित प्रत्यय
एक वे जो क्रिया धातु के बाद लगकर संज्ञा/ विशेषण बनाते हैं। इनको कृत प्रत्यय कहा जाता है,
जैसे – पढ़ाई, लिखाई, पठनीय, गणनीय आदि।
दूसरे प्रत्यय वे जो संज्ञा, विशेषण आदि शब्दों में जुड़कर संज्ञा और विशेषण बनाते हैं, इनकों तद्धित प्रत्यय कहा जाता है,
जैसे – बचपन, धार्मिक, औपचारिक, गुणवान आदि।
कृत प्रत्यय
ये प्रत्यय क्रिया के धातु रूपों में लगकर संज्ञा, विशेषण आदि शब्द बनाते है। कृत प्रत्ययों से बने शब्दों को कृदंत कहा जाता है।
कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं –
क = गायक, सेवक, नायक, पाठक
त = नेता, अभिनेता, विक्रेता
हार = होनहार, खेलनहार, सेवनहार
दान = लेनदार, देनदार
अन = भवन, चिंतन, करण
नी = चलनी, फुँकनी
ना = ढकना, पिटना, बेलना
तद्धित प्रत्यय
ये प्रत्यय क्रिया से अन्य शब्दों; जैसे – संज्ञा, विशेषण, अव्यय आदि के बाद लगते हैं और प्राय: संज्ञा/विशेषण बनाते हैं।
उदाहरण
इया = डिबिया, खटिया, बिटिया
डा = मुखड़ा, दुखड़ा
पा = बुढ़ापा, मोटापा
ता = लघुता, सुंदरता
आर = सुनार, लुहार, कहार
आस = गिलास, खटास
आहट = कड़वाहट, चिकनाहट, लिखावट
ईन = नमकीन, रंगीन, शौकीन
समास (3)
शब्द निर्माण की प्रक्रिया उपसर्ग, प्रत्यय के साथ साथ समास द्वारा भी हो सकती है। दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से जब कोई नया शब्द बनता है तो उस शब्द रचना को समास रचना कहते हैं।
जैसे – स्नान के लिए गृह = स्नानगृह, दस हैं जिनके आनन = दशानन आदि
अत: ‘समास’ वह शब्द रचना है जिसमें अर्थ की दृष्टि से परस्पर स्वतंत्र संबंध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्द मिलकर किसी अन्य स्वतंत्र शब्द की रचना करते हैं।
समास रचना में दो पद होते हैं, पहला पद पूर्व तथा दूसरा पद उत्तर कहा जाता है। इन दोनों शब्दों से बना नया शब्द समस्त पद कहा जाता है।
समास के भेद
समास के चार भेद हैं –
तत्पुरुष समास ( द्विगु समास, कर्मधारय), बहुब्रीहि समास, दवंद समास, अव्ययीभाव समास
तत्पुरुष समास
जहां पूर्व पद विशेषण होने के कारण गौण तथा उत्तर पद विशेष्य होने के कारण प्रधान होता है, वहाँ तत्पुरुष समास होता है।
जैसे – दान में वीर = दानवीर, देश का वासी = देशवासी, राजा का कुमार, राजकुमार
तत्पुरुष समास के उपभेद
कर्मधारय समास
इस समास में पूर्व पद ‘विशेषण’ और उत्तर पद ‘विशेष्य’ होता है। पूर्व व उत्तर पद में उपमेय उपमान संबंध भी हो सकता है।
जैसे –
समस्त पद | विशेषण | विशेष्य |
नीलकंठ | नीला है जो | कंठ = नीला कंठ |
नीलकमल | नीला है जो | कमल = नीला कमल |
पीताम्बर | पीला है जो | अम्बर = पीला वस्त्र |
महादेव | महान है जो | देव = महान देवता |
नीलगगन | नीला है जो | गगन = नीला गगन |
द्विगु समास
इस समास में उत्तर पद ‘प्रधान’ होता है और विशेष्य होता है, जबकि पूर्व पद ‘संख्यावाची विशेषण’ होता है। जैसे –
संख्यावाची विशेषण | विशेष्य |
पंचवटी | पाँच वृक्षों वाला स्थान |
तिराहा | तीन राहों का समूह |
शताब्दी | सौ वर्षों का समूह |
चौमासा | चौ मासों का समूह |
बहुब्रीहि समास
बहुब्रीहि समास वहाँ होता है, जहां समस्त पद में आए दोनों ही पद गौण होते हैं तथा ये मिलकर किसी तीसरे पद के विषय में कुछ कहते हैं, यही तीसरा पद ही प्रधान होता है।
उदाहरण
पीताम्बर = पीला है अम्बर जिसका = श्रीकृष्ण
दशानन = दश हैं आनन जिसके = रावण
त्रिलोचन = तीन हैं नेत्र जिसके = शिव
कमलनयन = कमल के समान हैं नयाँ जिसके = विष्णु
दवंद समास
जिस समास में दोनों ही पद प्रधान होते हैं, उसे दवंद समास कहते हैं, इसमें दोनों पदों को जोड़ने वाले समुच्चयबोधक अव्यय का लोप हो जाता है जैसे –
समस्त पद | विग्रह |
अन्न – जल | अन्न और जल |
आजकल | आज और कल |
आटादाल | आटा और दाल |
गंगा – यमुना | गंगा और यमुना |
अव्ययीभाव समास
जिस समास में पूर्व पद अव्यय हो उसे अव्ययीभव समास कहते हैं, जैसे –
समस्त पद | अव्यय | विग्रह |
प्रतिदिन | प्रति | दिन दिन |
यथा शक्ति | यथा | शक्ति के अनुसार |
अनुरूप | अनु | रूप के योग्य |
यथा क्रम | यथा | क्रम के अनुसार |
उपसंहार
उपरोक्त वर्णित लेख से हिन्दी व्याकरण संबंधी शब्द निर्माण: उपसर्ग, प्रत्यय, समास का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है, जो विधयार्थियों के पाठ्यक्रम का भी महत्वपूर्ण विषय है,
साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी उपयोगी है। हमारी वेबसाइट आपकी सफलता में सहायक बनने का महत्वपूर्ण प्रयास करती है और करती रहेगी।
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