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Hindi Grammar for Class 10 |2 Best अलंकार तथा उनके भेद

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Hindi Grammar for Class 10

Hindi Grammar For Class 10 का पाठ्यक्रम कई प्रतियोगी परीक्षाओं में सम्मिलित है। प्रस्तुत पोस्ट Class 10 के विद्यार्थियों के लिए भी महत्वपूर्ण है, साथ ही विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले परीक्षार्थियों के लिए भी आवश्यक है।

Hindi Grammar के पाठ्यक्रम की अध्ययन सामग्री को हम अत्यंत सरल व बोधगम्य तरीके से साझा करते हैं।

पिछले पोस्ट में हमने Hindi Grammar के अंतर्गत शब्द निर्माण में सहायक उपसर्ग, प्रत्यय तथा समास का महत्वपूर्ण ज्ञान प्राप्त किया। 

तो आइए आज हम Hindi Grammar Class 10 के अंतर्गत अलंकार तथा उसके भेदों का उदाहरण सहित अध्ययन करें।

अलंकार का अर्थ

अलंकार में ‘अलम्’ और ‘कार’ दो शब्द हैं। ‘अलम्’ का अर्थ है – ‘भूषण’ या ‘सजावट’। अर्थात् जो अलंकृत तथा भूषित करे, वह अलंकार है।

स्त्रियाँ अपने साज शृंगार के लिए आभूषणों का प्रयोग करती हैं, अतएव आभूषण अलंकार कहलाते हैं।

ठीक इसी प्रकार काव्य की सजावट के लिए जिन तत्वों का उपयोग किया जाता है, वे अलंकार कहलाते हैं।

अत: हम कह सकते हैं कि काव्य के शोभाकारक धर्म अलंकार हैं। वस्तुत: अलंकार वाणी के शृंगार हैं। अलंकार के द्वारा अभिव्यक्ति में स्पष्टता, प्रभावोत्पादकता और चमत्कार आ जाता है।

उदाहरण –

  • राकेश की चाँदनी यमुना के जल पर चमक रही है।
  • चारु चंद की चपल चाँदनी चमक रही यमुना जल पर।

दोनों ही वाक्यों में एक ही बात भिन्न भिन्न रूपों में कही गई है, किन्तु पहले वाक्य की अपेक्षा दूसरे में अधिक सौन्दर्य है।

इसका करण यह है कि दूसरे वाक्य में अलंकार के प्रयोग ने चमत्कार और सौन्दर्य उत्पन्न कर दिया है।

अन्य उदाहरण –

  • उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।
  • सावन के बादलों सी उसकी आँखें बरसने लगी।
  • पति को छोड़ और कोई वरदान ले लो।
  • वर को छोड़ और वर ले लो।
अलंकार के भेद

भाषा और साहित्य का सारा कार्य व्यापार शब्द और अर्थ पर ही निर्भर करता है। अत: विशिष्ट शब्द – चमत्कार अथवा अर्थ वैशिष्ट्य ही कथन के सौन्दर्य की अभिवृद्धि करता है।

इसी आधार पर अलंकार के दो भेद होते हैं –

शब्दालंकार (1)

अर्थालंकार (2)

शब्दालंकार (1)

जहां किसी कथन में विशिष्ट शब्द प्रयोग के कारण चमत्कार अथवा सौन्दर्य आ जाता है, वहाँ शब्दालंकार होता है।

जैसे –

वह बाँसुरी की धुनि कानि परै, कुल – कानि हियों तजि भाजति है।

उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में कानि दो बार आया है। पहले शब्द कानि का अर्थ है कान और दूसरे शब्द कानि का अर्थ है मर्यादा।

इस प्रकार एक ही शब्द दो बार अलग अलग अर्थ देकर चमत्कार उत्पन्न कर रहा है।

अर्थालंकार (2)

जहाँ कथन विशेष में सौन्दर्य अथवा चमत्कार विशिष्ट शब्द – प्रयोग पर आश्रित न होकर अर्थ की विशिष्टता के कारण आया हो, वहाँ अर्थालंकार होता है।

जैसे –

‘मखमल के झूले पड़े हाथी सा टीला’

प्रस्तुत काव्य पंक्ति में बसंत के आगमन पर उसकी साज धज और शोभा की सादृश्यता किसी महंत की सवारी के साथ करते हुए चमत्कार उत्पन्न किया गया है।

शब्दालंकार के भेद

अनुप्रास अलंकार (1)

यमक अलंकार (2)

श्लेष अलंकार (3)

अनुप्रास अलंकार (1)

जहाँ वर्णों की आवृत्ति से काव्य में चमत्कार उत्पन्न हो, या जहाँ एक ही वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। 

उदाहरण –

  • कल कानन कुंडल मोर पखा, उर पे बनमाल विराजति है।

इस काव्य पंक्ति में ‘क’ वर्ण की तीन बार और ‘ब’ वर्ण की दो बार आवृत्ति होने से चमत्कार आ गया है।

  • तरनि – तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।

प्रस्तुत काव्य पंक्ति में ‘त’ वर्ण एक से अधिक बार आया है।

  • सुरभित सुंदर सुखद सुमन तुम पर खिलते हैं।

इस काव्य पंक्ति में ‘स’ वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार हुई है। अत: यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

यमक अलंकार (2)

जब एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आए और उसका अर्थ हर बार भिन्न हो तो वहाँ यमक अलंकार होता है।

उदाहरण

  • काली घटा का घमंड घटा, नभ मण्डल तारक वृंद खिले।

उपर्युक्त काव्य पंक्ति में शरद के आगमन पर उसके सौन्दर्य का चित्रण किया गया है। वर्षा बीत गई है, शरद ऋतु आ गई है।

काली घटा का घमंड घट गया है। घटा शब्द के दो विभिन्न अर्थ हैं – घटा = काले बादल आऊईर घटा = कम हो गया। घटा शब्द ने इस पंक्ति में सौन्दर्य उत्पन्न कर दिया।

अत: यहाँ यमक अलंकार है।

  • कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।

वा खाए बौराए जग, या पाए बौराए।।

प्रस्तुत काव्य पंक्ति में ‘कनक’ शब्द के दो अर्थ हैं, एक कनक का अर्थ है ‘सोना’ और दूसरे का ‘धतूरा’ है।

जिस प्रकार धतूरा खाकर मनुष्य पागल हो जाता है ठीक उसी प्रकार अधिक सोना अर्थात संपत्ति मिलने से भी मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो जाति है।

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श्लेष अलंकार (3)

श्लेष का अर्थ है ‘चिपकना’। जहाँ एक शब्द एक ही बार प्रयुक्त होने पर दो अर्थ डे वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है।

दूसरे शब्दों में, जहाँ एक ही शब्द से दो अर्थ चिपके हों वहाँ श्लेष अलंकार होता है।

उदाहरण

  • चरन धरत चिंता करत, चितवत चहुँ ओर।

सुबरन को ढूँढत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।।

उपर्युक्त दोहे की दूसरी पंक्ति में सुबरन का प्रयोग किया गया है। जिसे कवि, व्यभिचारी और चोर तीनों ढूंढ रहे हैं।

इसप्रकार यहाँ सुबरन शब्द के तीन रूप हैं। कवि के लिए अच्छे शब्द, व्यभिचारी के लिए अच्छा रूप रंग और चोर के लिए सोना।

अत: प्रस्तुत उदाहरण में श्लेष अलंकार है।

  • रहिमन पानी राखिए बिनु पानी सब सून। 

पानी गए न ऊबरे मोती मानुष चून।। 

इस उदाहरण में पानी शब्द के तीन अर्थ हैं, मोती के पक्ष में कान्ति, मनुष्य के पक्ष में आत्मसम्मान और चूना के पक्ष में जल।

अर्थालंकार के भेद

अर्थालंकार के प्रमुख पाँच भेद हैं –

उपमा अलंकार (1)

रुपक अलंकार (2)

उत्प्रेक्षा अलंकार (3)

मानवीकरण अलंकार (4)

अतिशयोक्ति अलंकार (5)।

उपमा अलंकार (1)

अत्यंत सादृश्य के कारण सर्वथा भिन्न होते हुए भी जहाँ एक वस्तु या प्राणी की तुलना दूसरी प्रसिद्ध वस्तु या प्राणी से की जाती है,

वहाँ उपमा अलंकार होता है। सरल शब्दों में कह सकते हैं –

उपमा का अर्थ है – तुलना। जब किसी उपमेय की तुलना उपमान से की जाती है, तब उपमा अलंकार होता है।

दो पक्षों की तुलना करते समय उपमा के निम्नलिखित चार तत्वों को ध्यान में रखा जाता है ;

उपमेय = जिसको उपमा दी जाए अर्थात जिसका वर्णन हो रहा है, उसे उपमेय कहते हैं।

‘चाँद – सा सुंदर मुख’ इस उदाहरण में ‘मुख’ उपमेय है।

उपमान = जिससे उपमेय की तुलना की जाए वह उपमान कहलाती है। प्रस्तुत पंक्ति में ‘चाँद’ उपमान है।

साधारण धर्म = उपमेय और उपमान का परस्पर समान गुण या विशेषता व्यक्त करने वाले शब्द साधारण धर्म कहलाते हैं।

उपर्युक्त पंक्ति में ‘सुंदर’ साधारण धर्म है।

वाचक शब्द = जिन शब्दों की सहायता से उपमा अलंकार की पहचान होती है। सा, सी, तुल्य, सम, जैसा, ज्यों, सरिस आदि शब्द वाचक शब्द कहलाते हैं।

उदाहरण

  • ‘प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे’।

उपर्युक्त पंक्ति में प्रात कालीन ‘नभ’ उपमेय है, ‘शंख’ उपमान है, ‘नीला’ साधारण धर्म है और ‘जैसे’ वाचक शब्द है।

यहाँ उपमा के चारों अंग उपस्थित हैं, अत: यहाँ उपमा अलंकार है।

  • हरिपद कोमल कमल – से।

इस उदाहरण में ‘हरिपद’ उपमेय है, ‘कमल’ उपमान, ‘कोमल’ साधारण धर्म और ‘से’ वाचक शब्द है।

रुपक अलंकार (2)

जहाँ गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय में ही उपमान का अभेद आरोप कर दिया गया हो, वहाँ रुपक अलंकार होता है।

उदाहरण

  • ‘मन – सागर, मनसा लहरि, बुड़े – बहे अनेक।‘

प्रस्तुत पंक्ति में मन पर सागर का और मनसा (इच्छा) पर लहर का आरोप होने से रुपक अलंकार है।

  • शशि मुख पर घूँघट डाले अञ्चल में दीप छिपाए।

यहाँ मुख उपमेय में शशि उपमान का आरोप होने से रुपक अलंकार का चमत्कार है।

  • चरण कमल बंदों हरी राई।

यहाँ चरण को कमल कहा गया। ‘चरण’ उपमेय पर ‘कमल’ उपमान का अभेद आरोप किया गया। 

उत्प्रेक्षा अलंकार (3)

जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना अथवा कल्पना की गई हो, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसके बोधक शब्द हैं –

मनो, मानो, मनु, मनहु, जानो, जनु, जनहु, ज्यों आदि।

उदाहरण

  • सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात।

मनहुँ नीलमनि सैल पर, आतप परयौ प्रभात।।

उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में श्रीकृष्ण के सुंदर श्याम शरीर (उपमेय) में नीलमणि पर्वत (उपमान) की और उनके शरीर पर  शोभायमान पीताम्बर में प्रभात की धूप की मनोरम संभावना अथवा कल्पना की गई है।

तथा ‘मनहुँ’ वाचक शब्द प्रयुक्त हुआ है अत: उत्प्रेक्षा अलंकार है।

  • उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उसका लगा।

मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।।

उपर्युक्त पक्तियाँ में अर्जुन के क्रोध से काँपते शरीर (उपमेय) में सागर के तूफान (उपमान) की संभावना की गई है।

‘मानो’ वाचक शब्द का प्रयोग किया गया है।

मानवीकरण (4)

जहाँ जड़ पर चेतन का आरोप अर्थात जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का आरोप हो, वहाँ मानवीय अलंकार होता है।

उदाहरण

  • बीती विभावरी जाग री।

अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घट उषा नागरी।

‘उषा’ में ‘नागरी’ का आरोप होने के कारण मानवीकरण अलंकार है। 

अतिशयोक्ति अलंकार (5)

जहां किसी वस्तु, पदार्थ अथवा कथन (उपमेय) का वर्णन लोक – सीमा से बढ़ाकर प्रस्तुत किया जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण

  • भूप सहस दस एकहि बारा। लगे उठावन टरत न टारा।।

धनुष भंग के समय दस हजार राजा एक साथ ही उस धनुष (शिव धनुष) को उठाने लगे, पर वह तनिक भि अपनी जगह से नही हिला।

यहाँ लोक सीमा से अधिक बढ़ा – चढ़ाकर वर्णन किया गया है, अतएव अतिशयोक्ति अलंकार है।

उपसंहार

उपरोक्त वर्णित लेख से हिन्दी व्याकरण संबंधी शब्दालंकार और अर्थालंकार का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है, जो विधयार्थियों के पाठ्यक्रम का भी महत्वपूर्ण विषय है,

साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी उपयोगी है। हमारी वेबसाइट आपकी सफलता में सहायक बनने का महत्वपूर्ण प्रयास करती है और करती रहेगी।

पोस्ट को पढ़कर प्रतिक्रिया अवश्य प्रदान करें। आपके सुझाव हमारा मार्गदर्शन हैं, तथा आपकी सफलता ही हमारा उद्देश्य है।

महत्वपूर्ण विषयों सामाजिक, धार्मिक तथा मनोवैज्ञानिक आदि से संबंधित लेख पढ़ने के लिए तथा स्वरचित कविताओं का आनंद प्राप्त करने के लिए हमारी अन्य वेबसाईट पर भी विज़िट अवश्य करें। 

सभी स्वस्थ रहें, मस्त रहें और सुरक्षित रहें। नमस्कार

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