Hindi Poem on Time
Hindi Poem on Time जैसा की शीर्षक से ही पता चल रहा है कि आज का विषय है, समय।
जी हाँ आज मैं समय पर कविता के माध्यम से जीवन की सर्वाधिक बहुमूल्य चीज समय के चक्र को स्वरचित कविताओं के द्वारा आप सभी तक पहुँचाने का नन्हा सा प्रयास कर रही हूँ।
इस सफर की स्वरचित कविताएं अवश्य ही आप के मन को छू जाएंगी। यह हिन्दी कविताएं न केवल गुजरे वक़्त की धार को ही उजागर करती हैं,
बल्कि संयम और साहस के साथ जीवन के प्रतिकूल समय को पार करने का हौसला भी देती हैं। भारत देश में वर्तमान समय अत्यंत कष्टदायी, चुनौतीपूर्ण और संघर्षपूर्ण है।
अधिकांश परिवार कोरोना महामारी से बेहाल हैं। एक तरफ लोगों के स्वास्थ की हानि हो रही है तो दूसरी तरफ मानसिक तनाव और अनहोनी का डर सताता जा रहा है।
किन्तु यह भी सत्य है कि इस संसार में प्रत्तेक वस्तु, जीव व मनुष्य का अंत आता ही है तो इस महामारी की क्या बिसात इसका भी अंत अवश्य होगा। बस समय के आने की देर है।
इसी तरह हम घूम फिर कर समय के सहारे ही आ जाते हैं। प्रस्तुत संकलन समय की ताकत को स्पष्ट करता है। वक़्त कभी नहीं रुकता सदैव चलता रहता है। कभी खुशी दे जाता है, तो कभी ग़म।
कभी परेशानी तो कभी सुकून। अब बस इंतजार है, उसी सुकून का बेखौफ जिंदगी जीने का। यह सिर्फ मेरी वेबसाइट पर साझा किया गया पोस्ट नहीं बल्कि मेरी आवाज है, जिसे मैं तमाम लोगों तक पहुंचाना चाहती हूँ।
प्रस्तुत विषय के अतिरिक्त मैंने जिंदगी पर कविता, गाँव पर कविता, प्यार पर कविता, प्रेरणाप्रद कविता, प्रेम पर कविता आदि पोस्ट भी अपनी वेबसाइट में सम्मिलित किए हैं।
तो आइए आज समय पर विचार करें, और साथ ही वास्तविक धरातल पर लिखी गई कविताओं के सफर की शुरुआत करें। सच ही है वक़्त बहती हुई धारा है, जिसे रोकने का सामर्थ किसी में नहीं।
वक़्त नदी की धारा की तरह बहता जाता है, ये वक़्त है की रेत जो हर पल फिसलती जाती है। रुकती ही नहीं। मुट्ठी में भरना चाहो तो मुट्ठी खाली ही रहती है, सिमटती ही नहीं।
हमारे जीवन में कभी अनुकूल समय चलता है तो कभी प्रतिकूल उस वक़्त हमारी भावनाएं, सपने, सोच सब कुछ बिखर से जाते हैं।
हम अपने कर्तव्य पथ से विचलित होकर अपनी समस्याओं में उलझ से जाते है और तनाव हमें खोखला करने लगता है। पिछले दिनों मैंने भी कुछ ऐसा ही अनुभव किया।
साथ में यह भी एहसास किया कि ऐसे प्रतिकूल समय में स्वयं को संभालने की आवश्यकता है। समय की इसी अद्भुत गतिशीलता पर आधारित प्रस्तुत पोस्ट की पहली कविता प्रस्तुत है –
No 1
वक़्त निकलता जाता है
दिल क्या चाहता है।
कभी नहीं बताता।।
बस इक अहसास,
दिल को टटोलता जाता है।
बस इक अधूरापन,
बेचैन कर जाता है।।
हम सोचते रह जाते हैं।
वक़्त निकलता जाता है।।
कभी ढूँढते रह जाते हैं,
खुशी को अपनी।
कभी बहते रह जाते हैं,
वक़्त के दरिया में।।
पर वक़्त तो बहती धारा है।
धारा बहती जाती है।।
हम सोचते रह जाते हैं।
वक़्त निकलता जाता है।।
वक़्त को रोक सकें,
बड़ी शिद्दत से चाहते हैं।
पर रेत फिसलती जाती है।।
कभी सोचते हैं,
मुट्ठी बंद कर लें
और किस्मत बदल जाए।
हम सोचते रह जाते हैं।
वक़्त निकलता जाता है।।
अपने वश में नहीं
नदी की धारा।
अपने वश में नहीं
हाथ की लकीरें।।
बस हर कोशिश बेवजह
हो जाती है।।
हम सोचते रह जाते हैं।
वक़्त निकलता जाता है।।
कभी सोचती हूँ,
वक़्त को रोक लूँ,
धारा को मोड़ दूँ,
लकीरों को बदल दूँ,
फिर इक लहर आती है।
और सोच बिखर सी जाती है।।
हम सोचते रह जाते हैं।
वक़्त निकलता जाता है।।
कहते है जीवन परिवर्तनशील है और जिंदगी के बदलावों को हमें स्वीकार करना ही पड़ता है। भले वो बदलाव हमारे मन में काटें ही क्यूँ न चुभाते हों।
लेकिन हमें परिवर्तित जीवन के साथ सामंजस्य बनाना ही पड़ता है। समय की कष्टदायी मार के बाद भी मनुष्य को संभलना ही होता है और यही मानव के लिए श्रेषकर भी होता है।
यह समय की मार कभी – कभी हमें बिल्कुल अकेला महसूस कराती है। अकेलेपन का यह अहसास मनुष्य को तनाव से ग्रस्त कर देता है। किन्तु समय से हार नहीं माननी चाहिए।
जो समय घाव देता है वही मलहम भी लगाता है तथा धीरे – धीरे घावों को भर भी देता है। इस पोस्ट की अगली कविता जीवन में आए अकेलेपन को उजागर कर रही है।
वो अकेलापन जो महफ़िल में भी एकाकी कर दे, हजारों लोगों की भीड़ में भी तन्हा कर दे और खुशनुमा माहौल में भी उदास कर जाए। वर्तमान समय न जाने कितने ही लोगों को अकेला कर गया –
No 2
मन अकेला सा है।
अब इस वक़्त मन अकेला सा है।
कहने को तो जिए जा रहे हैं।।
फिर भी तन्हाईयों का डेरा सा है।
अब इस वक़्त मन अकेला सा है।।
हर तरफ किरणों का सवेरा सा है।
फिर मन के आँगन में अंधेरा क्यूँ है।।
आँखों में सपनों का अधूरापन सा है।
अब इस वक़्त मन अकेला सा है।।
गिनने में तो खुशियों की कमी नहीं।
फिर भी मुस्कुराहट पर पहरा सा है।।
दिल में उम्मीदों का टूटा टुकड़ा सा है।
अब इस वक़्त मन अकेला सा है।।
राह में चलने वालों की कमी नहीं।
फिर भी थका हुआ मन बेसहारा है।।
मंजिल तक पहुंचना अधूरा सा है।
अब इस वक़्त मन अकेला सा है।।
भले ही ये अकेलापन समय के साथ हमारे मन में शामिल हो गया हो किन्तु हमें उसे बाहर निकाल फेकना है। उसे अपने विचारों, सोच और अंतर्मन से अलग करना ही साहस का प्रदर्शन है।
जीवन में आगे बढ़ना ही समय को मात देना है। यह यथार्थ सत्य है की समय कभी नहीं ठहरता। ठहरते हैं तो चंद लम्हे, पल, एहसास और जज़्बात। जो हमारी दिल की गहराइयों में समाए होते हैं।
प्रस्तुत कविता इन्हीं भावनाओं को बयां कर रही है –
No 3
गुजरता रहा वक़्त
हर इक पल गुजरे हुए लम्हे कहलाते रहें।
गुजरता रहा वक़्त पर जज़्बात ठहरते रहे।।
दिन रात गुजरे वक़्त के साक्षी बन आते रहे।
मन के किसी कोने में कुछ यादें जगाते रहे।।
आँखों में टूटे काँच के टुकड़े चुभते रहें।
आँखों को बस खोले हुए हम राह तकते रहें।।
हथेली में कैद कुछ पलों की महक आज भी है।
मुट्ठी में भर लूँ बिखेरूँ या सँजोय रखूँ।।
बेखौफ जिंदगी की तलाश में गुजरती जा रही जिंदगी।
अपनी ही खामियों का बोझ कब तक उठाते रहें।।
गुजरती हुई धारा में भी पानी ठहरता नहीं।
गुजरते जा रहें पल पर वो लम्हे ठहरते रहें।।
गुजरते वक़्त में रिश्तों की चमक सजी रहे।
कभी इंतजार खत्म होगा बस आस ये बनी रहे।।
जिन्हें देखे बिन इक पल चैन आता न था।
आज उनकी यादों की बस महफ़िल सजी रहे।।
समय बड़ा बलवान है। समय की जीत हमेशा ही होती आई है। हम मनुष्य कठपुतली की तरह समय के इशारों पर नाचते हैं। लेकिन समय कारसाज भी है।
यदि आज निराशा के अंधकारों में डुबाता है, तो कल रौशन आशा की किरणों के दर्शन भी कराता है। समय के चक्रव्यूह का सामना करने के लिए हमारा संकल्प, साहस, हौसला और संयम बहुत बड़ा संबल है।
यह सहारा समय की गति को रोक नहीं सकता लेकिन उसके प्रतिकूल प्रभाव से उबार अवश्य सकता है। तो आइए बलवान समय को भी अपने साहस और संयम से मात दें और इस पोस्ट की अंतिम कविता पढ़ें।
यह कविता अवश्य आप को समय से हार ना मानने की शिक्षा व हौसला प्रदान करेगी –

No 4
समय पर कविता
समय कभी ना हारे।
हम तुम थक कर बैठ जाए।।
पर समय ना थक हार मानें।
समय कभी ना हारे।।
कभी हसाए कभी रुलाये।
कभी यादों में झकझोर जाए।।
कल को आज कर माने।
समय कभी ना हारे।।
बहती धारा बहती जाए।
लहरों को लहराती जाए।।
किनारे आकर भी ठहरना ना जानें।
समय कभी ना हारे।।
पल पल करके गुजर जाए।
क्षण क्षण करके निकल जाए।।
चक्र है बस चलना जाने।
समय कभी ना हारे।।
समय के संकेत पर सूरज आए।
समय का फेरा चन्दा लाए।।
प्रकृति भी कठपुतली बन नाचे।
समय कभी ना हारे।।
समय के साथ चलते जाए।
समय के हाथ पकड़ते जाए।।
समय ना व्यर्थ गवाना जाने।
समय कभी ना हारे।।
हार को जीत बनाना जानें।
दुख में भी मुस्कुराना जानें।।
तभी समय को मारे।
समय कभी ना हारे।।
साहस को मन में भर पाए।
संयम से हर वक़्त बिताए।।
हौसले से चलना जाने।
तभी समय है हारे।।
समय जितना बलवान है, उतना ही मूल्यवान भी है। मनुष्य धन संपदा कभी भी कमा सकता है, लेकिन अगर समय एक बार बीत गया तो कभी वापस नहीं आता। संसार में हम सब कुछ संग्रहीत कर सकते हैं,
किन्तु समय का संचयन असंभव है। हम अपने अच्छे कर्मों से कमाया सुखद समय याद करके भविष्य में प्रसन्न हो सकते हैं या फिर स्वार्थ,
लोभ व लालच से अपनी मानवता को खोकर बिताया हुआ वक़्त याद करके स्वयं पर तरस भी खा सकते हैं। देश की वर्तमान स्थिति में भी कुछ लोग लोभ और लालच नहीं छोड़ प रहे।
नकली दवाओं का व्यापार, दवाओं को चौगुने दामों में बेचना, अस्पतालों में इलाज ना मिलने पर भी लाखों का बिल बनाना आज आम बात हो गई है।
लाखों कारोडों रूपियों के लिए अपनी इंसानियत को तौलना क्या उचित है? विचार कीजिए। वर्तमान विषम परिस्थितियों में यदि आप किसी की सहायता करने में सक्षम हैं,
तो स्वयं को सुरक्षित करते हुए जरूरतमंदों की मदद कीजिए। आज ईश्वर ने आपको समय दिया है, लोगों की निस्वार्थ भाव सहायता करने का समय मत गवाइए।
यदि कुछ नहीं कर सकते तो ईश्वर से जरूरतमंदों व देश की सलामती के लिए प्रार्थना कीजिए लाखों में से किसी की फ़रियाद तो वहाँ तक पहुचेगी।
प्रस्तुत पोस्ट समय की धारा, मूल्य तथा प्रतिकूल समय के दंश को उजागर नहीं करता बल्कि वर्तमान चुनौतीपूर्ण वक़्त में मानवता को मानवता व नैतिकता की ओर अग्रसर होने का संदेश भी देता है।
आशा करती हूँ कि कविताओं के सफर के माध्यम से किया गया मेरा यह नन्हा सा प्रयास अपनों को खोए हुए लोगों को भी साहस देगा कि
वह अपने जीवन के बिखराव को समेट सकें तथा जीवन को सकारात्मक सोच प्रदान कर सके। ईश्वर से प्रार्थना है की हमारे देश को इस विकट समस्यापूर्ण समय से जल्द ही उबारे।
इस संकट भरे समय में हमारी सहायता करें। इसी कामना के साथ हिन्दी कविताओं का यह सफर यही समाप्त करती हूँ। आप सभी घर पर सुरक्षित रहे तथा स्वस्थ रहें नमस्कार।