Hindi Poetry on Bhasha
Hindi Poetry on Bhasha, काव्य के विभिन्न इंद्रधनुषी रूप हैं। आज प्रस्तुत पोस्ट में हम भाषा तथा साहित्य के माध्यम से हम हिन्दी कविताओं का आनंद प्राप्त करेंगे।
हिन्दी कविता वह काव्य रचना होती है। जिसको पढ़ते ही मन विभिन्न रसों और मनोभावों से परिपूर्ण हो जाता है।
हिन्दी काव्य में शब्दों के माध्यम से कल्पना को वास्तविकता के धरातल पर बड़े ही अनुभूतिपरक ढंग से उद्घाटित किया जाता है, जिसे पढ़ते व सुनते ही लोग अनेक मनोवेगों से सराबोर हो जाते हैं।
कह सकते हैं कि कविता कवि की भावनाओं का उद्घाटन होती है, ये भाव ही स्रोता और पाठकों के मन में भी उन्हीं अनुभूतियों को जाग्रत करने में सक्षम होते हैं।
काव्य का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है। कभी प्रेरणाप्रद कविताएं हमें प्रेरणा प्रदान करती हैं, प्रेमपरक कविताएं प्रेम का प्रसार करती हैं, तो कभी जिंदगी की कविताएं जीवन के मायने समझाती हैं।
इसी क्रम में हिन्दी कविता के अंतर्गत भाषा और साहित्य विषयों को भी स्थान प्रदान किया गया। आज मैं इन्हीं विषयों को समाहित किए हुए हिन्दी कविता के स्वरचित कविताओं के संकलन को साझा कर रही हूँ।
अवश्य ही प्रस्तुत कविताएं आप पाठकों को अपनी भाषा से जोड़ते हुए साहित्य का रसास्वादन भी प्रदान करेंगी। तो देर किस बात की आइए शुरू करते हैं स्वरचित कविताओं का आनंदपूर्ण, रोचक, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक सफर।
माँ सरस्वती विद्या व ज्ञान की देवी हैं। माँ शारदे की कृपा के बिना विद्या अर्जन, ज्ञान प्राप्ति एवं गुणों का प्रस्फुटन संभव नहीं। माँ सरस्वती के आगमन के कारण ही बसंतऋतु की प्राकृतिक शोभा अत्यधिक शोभायमान होती है।
बसंत के सुहावने मौसम के आगमन की आहट पर माँ सरस्वती की मुस्कुराहट मानो प्राकृतिक सुंदरता को और अधिक निखार देती है।
खिला – खिला नीला आकाश, पीली ओढनी से सुसज्जित हरियाली तथा पक्षियों की मधुर ध्वनि माँ सरस्वती के स्वागत में प्रसन्नता प्रसारित करती हुई प्रतीत होती है।
माँ शारदे के वरदान के बिना ज्ञानार्जन, लेखन में कुशलता, वाणी में मधुरता, विचारों में पवित्रता व भावनाओं की शीतलता अधूरी है।
आशा करती हूँ की हम सभी जनों पर माँ सरस्वती का आशीर्वाद बना रहे तथा माँ शारदे हमें अज्ञानता के अंधकार से निकाल कर ज्ञान के प्रकाश पुंज के दर्शन कराए।
इसी कल्याणकारी कामना के प्रस्तुत काव्य पंक्तियों के माध्यम से माँ शारदे से प्रार्थना करती हूँ, क्योंकि शिक्षा, कला व कौशल के क्षेत्र में माँ सरस्वती का स्थान सर्वोपरि है।
प्रस्तुत काव्य पंक्तियों के माध्यम से माँ शारदे से प्रार्थना करती हूँ कि उनके वरदान के फलस्वरूप मेरी लेखनी को सरसता और प्रभावमयता प्राप्त हो–
माँ शारदे
माँ शारदे का आज मुझको वर मिला है।
आज मेरी लेखनी को स्वर मिला है॥
शांत ठहरे मन को ज्यों सुर मिला है।
बेसहारे भाव को संबल मिला है॥
गहरी नीली झील को निर्झर मिला है।
माँ शारदे का आज मुझको वर मिला है॥
जो कभी मन की तरंगों की हलचले थी।
भावनाओं का सुरीला सरगम सजा है॥
जो कभी शब्दों की बिखरी पंक्तियाँ थी।
मोतियों की गूँथ सा संगम हुआ है॥
माँ शारदे का आज मुझको वर मिला है।
आज मेरी लेखनी को स्वर मिला है॥
संवेदनाओं को भावों का आधार मिला है।
कोर कागज पर वास्तविक संसार खिला है॥
कुछ कही अनकही कनखेलिया हैं।
उनकों वाणी का वरदान मिला है॥
माँ शारदे का आज मुझको वर मिला है।
आज मेरी लेखनी को स्वर मिला है॥
“साहितस्य भाव: साहित्यम्” अर्थात् जिसमें सहित का भाव हो, उसे साहित्य कहते हैं। सहित शब्द से ही साहित्य शब्द की उत्पत्ति हुई है।
अत: इस शब्द के अंतर्गत भाव, अर्थ, भाषा , कल्पना, वास्तविकता, रस तथा आनंदानुभूति का मिलन है। यही मिलन का रूप गद्य और काव्य के स्वरूप में उजागर होता है।
इसकी सीमा सीमित नहीं विस्तृत है या कहे की असीम में इसके अंतर्गत कविता, कहानी, नाटक, निबंध, रिपोतार्ज, जीवनी, रेखाचित्र, यात्रा वृतांत या संक्षेप में कहे तो गद्य और काव्य का समाहित रूप है।

साहित्य
शब्द और अर्थ का समभाव ही साहित्य है।
अंतरंग अनुभूति अभिव्यक्ति ही साहित्य है॥
काव्य का सौन्दर्य सुकुमारता साहित्य है।
गद्य की यथार्थता कथा ही साहित्य है॥
साहित्य में समाहित संसार का सार है।
कविता के सुर गद्य की झंकार है॥
कविता कहानी साहित्य की शान है।
कवि की भावनाएं काव्य की पहचान है॥
लेखक की लेखनी साहित्य का सम्मान है।
काल्पनिक धरातल पर वास्तविक ज्ञान है॥
अनेक रंगों से युक्त साहित्य का अस्तित्व है।
इन्द्रधनुष सा रंगीला साहित्य का व्यक्तित्व है॥
मानस पटल पर साहित्य का ही राज्य है।
जीवन की सूक्ष्मता साहित्य का ही नाम है॥
मानव पीड़ा की समग्रता का गान है।
हिन्दी साहित्य का सर्वोच्च स्थान है॥
मानव जीवन में भाषा का स्थान अत्यधिक है जब से मानव की सृष्टि हुई तभी से भावनाओं का समुद्र लहराने लगा और उन भावनाओं की लहरों को भाषा ने ही उजागर किया।
भाषा हमारे भावों को प्रकट करने का मात्र माध्यम ही नहीं बल्कि हमारा सुकून है। भाषा ना होती तो ना ही लेखनी होती नहीं रचनाए और ना ही साहित्य।
भाषा ही हमारे अस्तित्व को पहचान और हमारी वाणी को सुर प्रदान करती है। भाषा के माध्यम से ही एक रचनाकार लेखक या कवि कहलाता है।
चाहे हम भाषा को लिख कर प्रकट करें चाहे बोल कर भाषा हमारी लेखनी की अनुभूतियां और स्वर की सरगम है। भाषा के अभाव में हमारा व्यक्तित्व व कृतित्व अधूरा ही है।
भाषा शब्द ‘भाष्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है बोलना। अत: भावों और विचारों की अभिव्यक्ति ही भाषा है। विचार विमर्श व विचारों के आदान – प्रदान के लिए भाषा का प्रयोग किया जाता है।
भाषा एक सामाजिक शक्ति के रूप में हमें सहज ही परंपरागत रूप से प्राप्त होती है। भाषा ही हमारी भावनाओं और विचारों को परिपक्वता तथा सुव्यवस्था प्रदान करती है।
भारत देश में अनेक भाषाएं व्यवहार में लाई जाती हैं, किन्तु हिन्दी भाषा सर्वोपरि है। हिन्दी राजभाषा व राष्ट्र भाषा की श्रेणी में स्थापित की गई है। यह अत्यंत सशक्त भाषा है। हिन्दी का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है।
हिन्दी भाषा की जननी संस्कृत भाषा है। संस्कृत भाषा देवभाषा, सुरभारती, देववाणी नामों से जानी जाती है। संस्कृत भाषा सभी भाषाओं का आधार है। हिन्दी भाषा पर कविता के अंतर्गत मैंने भाषाओं के महत्व को समाहित किया है–
भाषागत विशेषता
हरी भरी वसुंधरा विशेषता अनेक हैं।
भाषागत देश की विशिष्टता अनेक हैं॥
विविधता में एकता भाषा की पहचान है।
हिन्दी और संस्कृत देश की जान हैं॥
राजभाषा राष्ट्रभाषा हिन्दी का ही नाम है।
न्याय के क्षेत्र में हिन्दी का स्थान है॥
स्वरों और व्यंजनों की संख्या अनेक हैं।
हरी भरी वसुंधरा विशेषता अनेक हैं॥
भाषागत देश की विशिष्टता अनेक हैं।
हिन्दी में समाहित शब्द भंडार है॥
देवनागरी लिपि हिन्दी का ही नाम है।
विचार और विमर्श की सरलता अपार है॥
हिन्दीभाषा की ज्ञान संपदा अथाह है।
वर्ण और ध्वनियों की शब्द योजना अनेक हैं॥
हरी भरी वसुंधरा विशेषता अनेक हैं।
भाषागत देश की विशिष्टता अनेक हैं॥
संस्कृतभाषा की प्राचीनता प्रगाढ़ है।
भाषाओं की जननी की ममता अगाध है॥
शब्द और अर्थ की परिपूर्णता समान है।
व्याकरण की संपन्नता क्षमता अतुल्य है॥
श्लोकों और मंत्रों में विभिन्नता अनेक है।
हरी भरी वसुंधरा विशेषता अनेक हैं॥
भाषागत देश की विशिष्टता अनेक हैं।
देववाणी सुरभारती नाम से विख्यात है॥
सभ्यता संस्कृति संस्कृत की ही जान है।
संस्कृत से ही जीवंत संस्कृति का अस्तित्व है॥
ऋषि और मुनियों का यही व्यक्तित्व है।
देवभाषा के दैव्य स्वरूप अनेक हैं॥
हरी भरी वसुंधरा विशेषता अनेक हैं।
भाषागत देश की विशिष्टता अनेक हैं॥
हिन्दू धर्म ग्रंथों का यही आधार है।
ऋषि और मुनियों का यही वरदान है॥
संस्कृत साहित्य की संपदा अपार है।
हिन्दी भाषा का भी सर्वोच्च स्थान है॥
साहित्य में वास्तविकता के रंग अनेक हैं।
हरी भरी वसुंधरा विशेषता अनेक हैं।
भाषागत देश की विशिष्टता अनेक हैं॥
सच ही है हमारा भारत देश महान है, जहाँ कलाओ का समन्वय तथा भाषाओं की विशिष्टता विद्यमान है। स्वरचित कविताओं का यह संकलन कहीं न कहीं भारत देश की विशेषताओं को प्रकट करने में सक्षम सिद्ध होता है।
प्रस्तुत कविताएं भारतीय संस्कृति व सभ्यता की संपन्नता को उजागर करते हुए वैश्विक समाज में भी देश की समृद्धता को पहचानने तथा स्वीकार करने का संदेश देती है।
उम्मीद करती हूँ की आज कविताओं का यह सफर आप सभी को प्रसन्नता, संपन्नता व संतुष्टि का अहसास कराएगा और मेरी लेखनी को आप सभी पाठकों का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
कविताओं के सफर को यही समाप्त करती हूँ। आप सभी स्वस्थ रहें, मस्त रहें और सुरक्षित रहें नमस्कार।