जिन्दगी पर कविता
Jindagi Par Kavita प्रस्तुत पोस्ट मे मैंने जिंदगी की विभिन्न परिस्थितियों पर आधारित कविताओं का संकलन किया है। जिन्दगी और कविता का आपस में घनिष्ठ संबंध रहा है।
अनेक कवियों ने जिन्दगी को कविता के माध्यम से वर्णित किया है। कविता में जिन्दगी को कभी पहेली, कभी ख्वाब तो कभी अनसुलझी उलझन के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
जिन्दगी में कविता कभी नई ऊर्जा प्रदान करती है तो कभी नई सोच। आज मैं जिन्दगी के विभिन्न पहलुओं व परिस्थितियों को स्वरचित कविताओं के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगी।
तो आइए जिन्दगी को अनुभूतियों और भावनाओं रूपी मोतियों से पिरो कर काव्य रूपी माला का स्वरूप प्रदान करें।
जिन्दगी क्या है? जीवन में जब भी हम समस्याओं से घिरे होते हैं, तब सहसा मन में बस यही प्रश्न उभरता है –
(1)
ऐ जिन्दगी
ऐ जिन्दगी सच कहूँ,
तो क्या मिज़ाज हैं तेरे,
हम सब तो गुलाम हैं तेरे,
हर किसी से अलग अंदाज़ हैं तेरे,
इक पल हसाती हो इक पल रुलाती हो।
न जाने किस साज़ पर हमें बजाती हो?
हर पल किसी कमी का एहसास दिलाती हो॥
पूछूँ जो तुमसे तो मुस्करा के टाल जाती हो।
बस यूँ ही हमें सताती हो ॥
जिन्दगी हर क्षण परीक्षा लेती है। जीवन के उतार-चढाव उसी परीक्षा के परिणाम होते हैं। जीवन की इस परीक्षा के समय में हमें इंसान की सच्ची पहचान प्राप्त होती है –
जिन्दगी पर कविता (2)
इम्तिहान
जिन्दगी इम्तिहान लेती है।
कभी खुशी तो कभी गम के जाम देती है।।
जिन्दगी इम्तिहान लेती है।
हँस कर सह लो हर गम यही पैगाम देती है।।
गैरों के इस जमाने में अपनों की पहचान देती हैं।
भटके हुए राही को मंजिल के निशां देती है।।
कभी आसमां की बुलंदियों की पहचान देती है।
तो कभी जमीं की गोद में स्थान देती है।।
जिन्दगी तो जिन्दगी है इम्तिहान लेती है।
कभी जख्मों को कुरेद कर दर्द का एहसास देती है।।
तो कभी जख्मों को सहलाकर दर्द में आराम देती है।
लोगो का क्या हर किसी के गम में खुशी मानते हैं।
इंसा तो इंसा ही है, बस इंसानियत भुलाए जाते हैं।।
जिन्दगी एक लम्बी यात्रा है। जिसमें अनेक पड़ाव आते हैं। अनगिनत लोग मिलते हैं और बिछड़ते हैं। जिन्दगी के आवागमन का चक्र एक रहस्य है, जिसे सुलझाना संभव नहीं –
Hindi Poems on Life (3)
आवागमन
इक लम्हें में पूरी जिन्दगी जी लूँ,
वो लम्हा अब कहाँ रहा।
जिस लम्हें का इंतज़ार था मुझे,
वो लम्हा ही अंजान रहा॥
अब तो लम्हें भी वो याद आते नहीं।
पन्ने भी अब भर गए हैं।
जिन्दगी की जिस किताब को पढ़ा था कभी,
वो किताब भी अब कहाँ रही।
अनजाने ही लोग मिलते रहे॥
इक पल आए, इक पल चले गए।
ठहरी मैं सोचती रही,
गर आवागमन ही जिन्दगी है,
तो जिन्दगी फिर कहाँ रही॥

कहते हैं कि समय बड़ा बलवान होता है। समय के अनुसार ही हमें अपनी जिन्दगी जीनी पड़ती है, किन्तु यह भी सच ही है कि हमारा मन चंचलता की समग्रता को समेटे हुए
प्रति-दिन जिन्दगी से डट कर सामना करता है। नई नई उम्मीदें करता है और आशा के दमन को थामे हुए अंतत: अपने लक्ष्य को प्राप्त भी कर लेता है-
(4)
मन
तड़प कर रह जाता है मन,
तड़प कर रह जाता है मन,
पर अपनी शर्तों पर जिन्दगी जी नहीं सकते।
वक़्त कि ताल पर जिन्दगी बिताई जाती है॥
वक़्त कि शिकस्त में जिन्दगी जी नहीं जाती।
फिर भी चले जा रहे हैं, अपनी खुशी को पाने के लिए॥
हर पल हर क्षण जिन्दगी में नई रौशनी लाने के लिए।
बस इक आशा की किरण जलाए जाने के लिए॥
चलते जाने के लिए, चलते जाने के लिए।
विषमताओं, विकटताओं और संकटों से घिरी जिन्दगी भी हमें नवीन दिशा, नवीन राह और नवीन ऊर्जा प्रदान करने में समर्थ होती है। आवश्यकता है धैर्य धारण करने की।
वर्तमान समाज जहाँ स्वार्थ का बोलबाला है। हर व्यक्ति धन कमाने के लिए वैश्विक दौड़ में दौड़ने के लिए मनुष्यता की सीमा का उल्लंघन करने में संकोच नहीं करता-
(5)
इंसानियत
आज हर इंसान हर इंसान से महरूम है।
जिन्दगी का अब बस यही दस्तूर है॥
आज हर इंसान है अपने-अपने रास्ते।
सोचता ना कोई किसी के वास्ते॥
इंसानियत का क्यूँ हर रिश्ता टूटने पर मजबूर है॥
आज क्यूँ बस हर कोई जीने को मजबूर है।
हर नज़र में आज क्यूँ दिखता नहीं प्यारा समा॥
हर तरफ है स्वार्थ खोया कहाँ अपना जहाँ।
दौड़ में दुनियाँ की जो रफ्तार बढ़ती जा रही॥
इंसानियत की हर मिसाल मायने बदलती जा रही।
जिन्दगी में हम सभी कभी ना कभी लोगों से या समय से मात खाते रहते हैं। लेकिन हमें जब-जब जीवन में मात मिले तब-तब और अधिक आत्मविश्वास से आगे बढ़ना चाहिए।
जो बातें, समय व यादें हमें दुखी करे उसे जिन्दगी के पन्नों में इस कदर छुपा देना चाहिए की ढूँढना भी चाहें तो भी ना मिले। फिर देखिएगा आपको बुरी यादें कभी भी नहीं सताएंगी –
(6)
ठोकरें
जमाने की ठोकरों से संवरती है जिन्दगी।
ये सोच कर ठोकरों का साथ निभाने लगे॥
ठोकरें खा कर संभालना सीखा था।
अब संभल-संभल कर ठोकरें खाने लगे॥
लोगों का क्या मौसम के साथ बदलते हैं।
लोगों को देख कर खुद को बदलने लगे॥
आईना देखा तो पहचान सकें ना।
इस कदर जमाने ने सूरत बदल दी॥
इक दौर था जिन्हें मानते रहे अपना।
इक पल उन्होने दामन छिटक दिया॥
अब तो आखें भी ढूंढती नहीं उनको।
और यादों पर झीना सा परदा पड़ गया॥
प्रकृति सदैव से ही मनुष्य की सहचरी रही है। प्रकृति हमें नई सोच, नई दिशा और नई ऊर्जा प्रदान करती है।
आप स्वयं अनुभव कीजिये जब आपका मन अशांत और उलझनों में उलझा हो उस समय प्रकृति को निहारिए उदित होता सूर्य, उसकी प्रथम किरण,
खुला आसमां, उड़ते हुए पक्षी, पक्षियों की मधुर ध्वनि, शीतल पवन के झोके, मदमस्त नृत्य करते हुए पेड़-पौधे और उनकी शोभा बढ़ाते पुष्प।
अवश्य ही आप अपनी चिंताए भूल कर शांति का अनुभव करेंगे। प्रकृति जिन्दगी से हारे हुए लोगों को भी प्रत्तेक सुबह इक नई सुबह होने का ही संदेश देती है। जरा प्रकृति के सानिध्य में आ कर तो देखिये –
(7)
नई सुबह
आसमां में बादलों का घेरा तो है,
सूरज की रौशनी सा सवेरा तो है,,
पक्षियों के कलरव की गुंजार भी है,
मदमस्त झोकों की बहार भी है,,
प्रकृति के सौन्दर्य का श्रंगार भी है,,
क्योंकि हर सुबह इक नई सुबह का आगाज ही है।
आप स्वयं को आशावादी, आत्मविश्वासी तथा दृढनिश्चयी व्यक्तित्व प्रदान कीजिए फिर जिन्दगी लाख मुश्किलों का पिटारा सही किन्तु आपको उसमे से खुशी,
शांति, उल्लास, उत्साह, प्रसन्नता, आत्मसंतुष्टि तथा सफलता के मोती अवश्य प्राप्त होंगे। आप सभी स्वस्थ रहें, मस्त रहें और सुरक्षित रहें नमस्कार।