Kavita Kya Hai?
Kavita Kya Hai? कविता कवि की भावनाओं का उद्घाटन है, कविता कवि की संवेदना का प्रवाह है, कविता जीवन को नई चेतना प्रदान करने का अनूठा माध्यम है,
कविता प्रकृति से तादात्म्य या आंतरिक सौन्दर्य का उद्वेलन है, अर्थात कवि की भावनाओं का रसात्मक उद्घाटन ही कविता है।
प्रस्तुत पोस्ट में कविताएं साझा करने से पूर्व कविता का अर्थ और महत्व विषय का अध्ययन करना आवश्यक प्रतीत हुआ
अत: सर्वप्रथम हम कविता का क्या अर्थ है? कविता कैसे उत्पन्न होती है? तथा कविता के महत्व का सामान्य परिचय प्राप्त करेंगे।
कविता का अर्थ व उत्पत्ति
“कविता मनुष्य के मनोवेगों को उत्तेजित कर भावों को प्रस्फुटित करने वाली एक ऐसी छंदों बद्ध रचना है,
जो मनुष्य की भावनाओं को उद्वेलित करके मानव जीवन को नवीन गति प्रदान करती है।“
भारतीय साहित्य में कवि, काव्य और कविता शब्दों का प्रयोग अति प्राचीन काल से हो रहा है। ऋग्वेद में इन दोनों का प्रयोग क्रमश: ईश्वर एवं संसार के लिए हुआ है–
“कविर्मनीषी परिभू: स्वयंभू:।“
अर्थात यह विश्व उसी की रचना है। यदि ईश्वर कवि है तो विश्व उसका काव्य है– ‘पश्य देवस्य काव्यम’।
वेदों में कवि एवं काव्य को स्पष्ट करते हुये यह भी कहा गया है– ‘कवियति सार्व जानाती सर्व वर्णयतीत कवि:’।
स्पष्ट है कि जो कविता करता है, सबको जानता है और सबका वर्णन करता है, वह कवि है। कवि के द्वारा किया गया कर्म ही काव्य व कविता होती है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कविता को परिभाषित करते हुये कहा है– “जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञान दशा कहलाती है,
इसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रस दशा कहलाती है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं।“
अत: कह सकते हैं कि कविता कवि हृदय की सौन्दर्य व भावयुक्त अभिव्यक्ति होती है, जो मनुष्य को परम आनंद की प्राप्ति कराती है।
कविता सुनने में प्रिय लगने वाली, मन को आह्लादित करने वाली, हृदय को स्पंदित करने वाली रसात्मक अभिव्यक्ति है।
जो कानों में पड़ते ही अनेक भावों को उत्तेजित कर देती है और मन उन्हीं भावों के अनुसार रसों की अनुभूति करता है।

कविता का महत्व
कविता के माध्यम से मनुष्य संसार में व्याप्त सुख-दुख, आनंद, शांति, परंशांति, प्रकृतिप्रेम, देशप्रेम आदि का यथार्थता पूर्ण अनुभव कर सकते हैं। कविता मनुष्य को भावात्मकता से जोड़ती है।
मनुष्य को मनुष्य बने रहने की प्रेरणा देती है। जब-जब मानव जाति अपने कर्तव्य से विचलित होते रही हैं तब-तब कवियों की कविताएं उन्हें प्रेरणा देने का कार्य करती आई हैं।
वर्तमान में मनुष्य सांसरिक बंधनों में इस कदर लिप्त है कि किसी के दुख, दर्द, दीनता अभाव, क्रंदन का एहसास ही नहीं होता।
मन के समस्त भाव किसी कोने में निष्क्रिय पड़े हैं। कविता इन्हीं भावों को जाग्रत करने का कार्य करती है।
जब अंत: करण में शब्दों की उत्पत्ति होती है तब कोई बंधन नहीं होता, कोई रुकावट नहीं होती, बस विद्यमान होती है
भावात्मकता, अर्थात्मकता, सहजता, सरसता, सौंदर्य प्रियता, शांति प्रियता और स्वाभाविकता से परिपूर्ण रसात्मक अनुभूति वही कविता होती है।
कविता के अर्थ और महत्व को समझने के पश्चात मैं कविता के अर्थ को स्वरचित काव्य पंक्तियों के माध्यम से साझा कर रही हूँ। कविता को कविता के द्वारा परिभाषित करना अत्यंत रोचक होता है, प्रस्तुत है मेरी–
हिन्दी कविता 1
कविता हूँ
इस जगत की सृष्टि का
निर्माण का मैं एक कण हूँ।
कल्पना की शक्ति से
वास्तविकता का अनुसरण हूँ॥
है अगर लेखनी में बल
तो रचनाओं का समुंदर हूँ।
भावनाओं के धरातल पे
सृजन का हर एक क्षण हूँ॥
खो रही इस विश्व की
संवेदनाओं की लहर हूँ।
प्रकृति के श्रंगार की
लड़ियों में सजे वो नूपुर हूँ॥
दे रही संदेश हर पल
शीतलता सरीखी सरिता हूँ।
अनुभूतियों की तरंगों सी
नवेली कविता हूँ॥
कल्पना शक्ति के प्रभाव से उत्पन्न, उम्मीदों व तमन्नाओं से परिपूर्ण अपनी कविता साझा कर रही हूँ। शीर्षक है ‘उड़ान’
हिन्दी कविता 2
उड़ान
परिंदों जैसी उड़ान चाहते हैं,
उड़ कर आसमां के पार चलें
यही अरमान चाहते हैं॥
पंखों की ख़्वाहिश तो हर किसी की होती है,
हम तो तमन्नाओं की एक आस चाहते हैं,
उन्मुक्त गगन में उड़कर आसमां की थाह
नापना चाहते हैं।
परिंदों जैसी उड़ान चाहते हैं॥
नीले तने वितान की असीमता के तले
चाँद की चाँदनी औ तारों की चमक को
तकना चाहते हैं,
कभी तो पास आएंगे इस आस में
जगना चाहते हैं।
परिंदों जैसी उड़ान चाहते हैं॥
प्रकृति की अद्भुत सृष्टि को हर नज़र भर
निश्छल पक्षी सा निशां छोड़ना चाहते हैं,
सृष्टि के कण कण में छिपा आनंद पाना चाहते हैं।
परिंदों जैसी उड़ान चाहते हैं॥
चाहत तो हमेशा से दुनियाँ के पार जाने की थी
अब तो बस प्रकृति को पहचानना चाहते हैं,
हर किरण की कीर्ति सा निखरना चाहते हैं।
परिंदों जैसी उड़ान चाहते हैं॥
कल तक जिसे समझते थे सुनहरा सपना
आज उसकी हकीकत को जानना चाहते हैं,
सौम्य सुनहरी काया सा सवरना चाहते हैं।
परिंदों जैसी उड़ान चाहते हैं॥
जिंदगी ख़्वाहिशों का पिटारा सही,
अब बस जिंदगी को जीना चाहते है।
यूँ तो खुशियों की कमी नहीं,
फुर्सत के पलों को समेटना चाहते हैं॥
परिंदों जैसी उड़ान चाहते है।
उड़ कर आसमां के पार चले,
यही अरमान चाहते हैं॥
डॉ. विनीता शुक्ला
आप सभी स्वस्थ रहें, मस्त रहें और सुरक्षित रहें नमस्कार।