Manviy Samvedna
मानवीय संवेदनाएं
Manviy Samvedna क्या हैं? यह प्रश्न आधुनिक समय में बहुत ही कम लोगों के मन-मस्तिष्क को प्रभावित करता है। कारण- संवेदना की कमी या संवेदना को महसूस न करना।
हमारे मन में सभी प्रकार के भाव संचित होते हैं, समय समय पर हम जैसी परिस्थितियों से गुजरते हैं वैसे ही भाव हमारे मन में उत्तेजित होते हैं।
मानवीय संवेदनाएं मनोवैज्ञानिक रूप से हमें प्रभावित करती हैं। ये मानवीय संवेदनाएं मनोवैज्ञानिक रूप से एक मनुष्य के मन को दूसरे मनुष्य के मन से जोड़ती हैं यही कारण है
कि कभी किसी व्यक्ति के दुख को देख कर हम अकस्मात ही दुख का अनुभव करते हैं यह हमारी ज्ञानेन्द्रियों के स्पंदन के कारण होता है।
उस क्षण उसके लिए हमारे मन में संचित करुणा व दया के भाव उत्तेजित होते हैं। सरल शब्दों में इन्हीं भावों की उत्तेजना को मानवीय संवेदना कहते हैं।

व्याकरणिक तथा मनोवैज्ञानिक रूप
संवेदना शब्द किसी एक विशेष अर्थ को व्यंजित नहीं करता। यह विविध अर्थों का बोधक है। संवेदना को हम व्याकरणिक तथा मनोवैज्ञानिक दोनों ही रूपों से समझ सकते हैं।
संवेदना शब्द की व्युत्पत्ति ‘सम’ उपसर्ग पूर्वक ‘विद’ (वेदना) धातु में ल्युट प्रत्यय लगाने से होती है अर्थात सम + वेदना=संवेदना।
यह संवेदना का व्याकरणिक अर्थ है। इसका शाब्दिक अर्थ है– प्रत्यक्ष ज्ञान, अनुभूति, भावना जागृति, उत्तेजना आदि। उत्तेजना को अँग्रेजी में सेन्शेसन (sensation) कहा जाता है
इसीलिए संवेदना के लिए सेन्शेसन शब्द का प्रयोग करते हैं। अँग्रेजी में संवेदना को सिंपैथी (sympathy) भी कहते हैं।
अत: समवेदनाओं का सीधा संबंध हमारी भावनाओं और बोध से होता है। संवेदना का भाव केवल मानव को मानव से नहीं जोड़ता बल्कि पशु-पक्षियों के लिए भी हमारे मन में ये भाव उत्तेजित होते हैं।
संवेदना की कोई सीमा नहीं, ये असीम भाव हैं। जिनसे हमारा कोई रिश्ता नहीं होता उनके प्रति भी हमारे मन में संवेदना उत्पन्न हो जाती है
और हम उनके दुख में दुख का अनुभव करते हैं तथा उनके सुख में सुख का यह मानवीय संवेदना का मनोवैज्ञानिक रूप है।
मानव जीवन में संवेदना का विशेष महत्व है। मनोवैज्ञानिक आधार पर मानव के मन व मस्तिष्क दोनों से संवेदना का चिर संबंध है।
हम सभी कभी न कभी संवेदना के भावों से सराबोर अवश्य होते हैं आवश्यकता है महसूस करने की। जब मानव मन स्वार्थ के भावों से भर जाता है
तब उसे किसी के प्रति संवेदना का एहसास नहीं होता। स्वार्थ मानव मन को क्लेश, स्पर्धा व अहं भावों से परिपूर्ण कर देता है तब करुणा, दया व प्रेम के भावों के लिए स्थान ही नहीं रहता।
जब मानव मन दूसरे के दुख में दुख का अनुभव करता है तब मन करुणा द्या और प्रेम के भावों से सराबोर हो जाता है। उस समय मानव हृदय पवित्र और निर्मल हो जाता है।
न किसी के लिए बैर रहता है और न ही ईर्षा की भावना। तब स्वार्थ भाव त्याग कर किसी के लिए कुछ अच्छा करने की भावना जाग्रत होती है, यही सच्चे अर्थों में मानवीय संवेदना कही जाती है।
यही मानवीय संवेदना मानव को एक आदर्श और संवेदनशील बनती है। वर्तमान समाज में मानव धन अर्जन के लोभ में अपनों को ही दुख पहुचाते रहते हैं।
येसे लोग कितना भी धन संपत्ति अर्जित कर ले किन्तु शांति और सुख कभी भी नहीं प्राप्त कर पाते। लोगों को समझना होगा की जीवन मात्र धन संपाती कमाने के लिए नहीं है
बल्कि आफ्नो के साथ रह कर सुख और आनंद का अनुभव काटने के लिए हैं। जरूरतमंदों की सहायता कर के देखिये कितनी संतुष्टि मिलती है। उस आत्मा संतुष्टि का सुख लाख रूपिया कमाने से बड़ा और सुखकर है।
तो अपने मन को संतुष्ट रखें, संवेदना जाग्रत करें, आपसी सम्बन्धों की कद्र करें, धन की बजाय जीवन में शांति की चाहत रखें। आप स्वयं अनुभव करेंगे की धन संपत्ति से आराम खरीदा जा सकता है लेकिन शांति और जीवन का सच्चा आनंद नहीं।
मैं अपने मस्तिष्क की एक ऐसी स्मृति को साझा कर रही हूँ जो मेरे मन मस्तिष्क पर एक अमिट छाप छोड़ गई। उस घटना ने मेरे मन की भावनाओं को उत्तेजित किया मेरे मन के भाव स्पंदित हुये और मन संवेदना के अथाह सागर में निमग्न हो गया।
उस स्मृति को मैंने अपने शब्दों के माध्यम से एक कहानी का रूप प्रदान किया है। कहानी का वर्णन अगले ब्लॉग में किया गया है। तो आइए पढ़ते हैं मानवीय संवेदना से ओतप्रोत कहानी ‘वो चौराहे की दुकान’।
\आप सभी स्वस्थ रहें, मस्त रहें और सुरक्षित रहें नमस्कार।
Nice
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This is a topic that’s near to my heart… Cheers!
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