Poem on Village in Hindi
Poem on Village in Hindi जैसा की शीर्षक से ही स्पष्ट है कि आज कविताओं के संकलन में मैंने गाँव पर कविता के माध्यम से भारतीय गाँवों के प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ – साथ उनकी उपयोगिता का भी वर्णन करने का प्रयास किया है।
ये स्वरचित कविताएं अवश्य ही हमें गाँव के सुखद, स्वच्छ, स्वास्थ्यवर्धक माहौल के दर्शन कराने में सक्षम रहेंगी। हम सभी जानते हैं की भारतदेश प्रधानत: गाँवों का देश है।
यहाँ की दो तिहाई से अधिक जनसंख्या गाँवों में रहती है। आधे से अधिक लोगों का जीवन खेती पर निर्भर है, इसीलिए गाँवों के विकास के बिना देश का विकास संभव नहीं।
तो आइए अब शुरू करते हैं स्वरचित कविताओं का यह सफर। यह कविताएं हमें गाँवों के महत्व का स्मरण कराती हैं।
गाँव एक ऐसे विशाल वृक्ष के समान हैं जिसकी जड़े धरती की गहराई में धस कर वृक्ष को हरा – भरा, लहलहाता हुआ बनाए रखती है।
उसीप्रकार हमारे गाँव देश के भरण पोषण के लिए अथक परिश्रम करते हैं, हमें उनका यह योगदान नहीं भूलना चाहिए।
हमारे गाँव भारतीय संस्कृति और सभ्यता के केंद्र हैं जो राष्ट्र को जोड़ कर रखते हैं। गाँवों का प्राकृतिक सौन्दर्य जीवन में ताजगी प्रदान करता है।
जीवन की सच्ची अनुभूति व प्यार तो बस गाँवों में ही बसता है। गाँवों की मिट्टी की सौंधी खुशबू में संस्कृति, मानवता व सहृदयता के फूल खिलते हैं।
गाँवों की हरियाली और मनोरमता तन – मन के कलुष तथा आलस्य को हर लेती है। वहाँ की शीतल मंद बयार में प्रेम, सद्भावना व संवेदना की लहर बहती है।
गाँवों के त्योहारों और धार्मिक कर्मों में भारतीय परंपरा की समरसता समाहित है। सच कहे तो देश की आत्मा गाँवों में ही बसती है।
इस संकलन की पहली कविता हमारे गाँवों के सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक महत्व को जाग्रत करती है। तो चलिए गाँव की समृद्ध संस्कृति के दर्शन करें –

गाँव पर कविता No 1
देश के गाँव
खुशहाली और संस्कारों की नीव
जहाँ से पनपी है।
सभ्यता में सौम्यता की शांति
जहाँ से जनमी है॥
हर तीज और त्यौहार में रौनक
जहाँ से चमकी है।
वह हैं देश के गाँव संस्कृति
जहाँ से सवरी है॥
प्रेम भाव सद्भाव की पवन
जहाँ से बिखरी है।
मानवता के प्रति संवेदना की लहर
जहाँ से फैली है॥
इक के दुख में दुखी हो आत्मा
वहीं की पिघली है।
वह हैं देश के गाँव जहाँ वाणी में
मिश्री घुलती है॥
होली के रंगों की असली रंगत
वही से रंगती है।
दिवाली के दीपों में ज्ञान की
रौशनी खिलती है॥
व्रत और उपवासों की परंपरा
वही पे मिलती है।
वह हैं देश के गाँव जहाँ हरियाली
की चादर बिछती है॥
सच ही है हमारे गाँव तीज त्यौहारों के उत्साह उमंग के केंद्र हैं। सच्चे अर्थों में त्यौहारों का मजा तो बस गाँव के मदमस्त माहौल में ही है।
आप में से जिन लोगों का बचपन गाँव में बीता होगा या गाँव में आना जाना रहा होगा यकीनन गाँव की बारिश की फुहारें, भीनी – भीनी सौंधी मिट्टी की सुगंध आज भी आप के मन को तारोताजगी से सराबोर कर देती होंगी।
बसंत में लहलहाते सरसों के खेतों की लहर, स्वच्छ अम्बर, मदमस्त शीतल पवन के झोंकें, पंक्षियों की सुमधुर सरगम, पीपल की छाया, बच्चों के खेल,
पतली मेड़ों पर संतुलन बनाकर चलने का प्रयास, टयूबेल की तीव्र धार को पकड़ने की कोशिश इतनी मस्ती, उमंग और शरारत भूल नहीं पाएं होंगें आप।
या यूँ कहें की व्यस्त शहरी जीवन में भी कभी ना कभी गाँव में बिताया वह अविस्मरणीय बचपन अपनी यादों में समेट ही लेता होगा। इन्हीं सुहावनी, सुखद, शीतल स्मृतियों को आप सभी पाठकों के लिए सँजो कर लाई है यह कविता।
अवश्य इसे पढ़ कर आप अपने गाँव की उन मनमोहक यादों से बच नहीं पाएंगे।
No 2
गाँव की याद
वो पेड़ों की छाया, वो गाँवों की माया।
वो गन्ने के खेतों में जीवन का पलना॥
वो शीतल बयारें हमें फिर पुकारें।
जहाँ बचपन का वो सपना सजाया॥
वो पीपल के नीचे चबूतरा बड़ा।
जहाँ गुड़ियाँ गुड्डों का खेल रचाया॥
वो बाग का झूला वो गाँव का मेला।
वो सूरज की किरणों का रौशन सवेरा॥
वो चिड़ियों की सरगम, वो फूलों की सुगंध।
वो भवरों का महकी कलियों पे फेरा॥
वो बैलों की जोड़ी का खेतों में चलना।
वो ट्रॅकटर की आवाज कानों में पड़ना॥
खेतों में लहलहाती फसलों का पकना।
वो कृषकों के चेहरे पर मुस्कान खिलना॥
वो बारिश में खेतों में झरती फुहारें।
वो मेड़ों पर चलना गिरकर संभलना॥
वो आसमानों का घिर – घिर बरसना।
वो पत्तों पर बूंदों का हर – पल फिसलना॥
वो जीवन का चलना यादों का पलना।
यादों के पन्नों का फिर – फिर उभरना॥
वो सालों पीछे हमें लेकर जाना।
बड़ा याद आता है गुजरा जमाना॥
वो पेड़ों की छाया, वो गाँवों की माया।
वो गन्ने के खेतों में जीवन का पलना॥
कितने मनोरंजक और इत्मीनान के पल थे, वे बस खेलना, घूमना, मस्ती करना। जितने भी दिन गाँव में बीतते थे। उन दिनों मन बस गाँव के माहौल में ही रमा रहता था। वह सुकून, शांति शहरी जीवन में शायद दुर्लभ ही है।
वह मनोहारी प्राकृतिक सुंदरता, चारों तरफ शांति, कभी सूर्य की किरणों का प्रसार तो कभी शीतल चाँदनी का पहरा। यदि आज भी हम अपने मन को टटोलें तो बस वो एक बार फिर गाँवों के वातावरण में रमने के लिए उत्सुक होगा।
तो देर क्यूँ करें चले मन से ही सही गाँवों की सैर करते हैं और शांति के पलों को चुनतें हैं –
No 3
शांति चुनें
आज मन की आवाज सुनें।
हलचल से दूर शांति चुनें॥
ख्वाबों को बुनें, बातों को गुनें,
बस आज मन की आवाज सुनें॥
सरगम की तान, मधुर गुंजार
मलय बहार सी लहर चलें।
यह संसार बनें गुलजार
कुसुम सुबास सी सुगंध घुले॥
मन की मुराद, भ्रमरों का गान
बारिश की फुहार खेतों में झरें।
सौंधी खुशबू मन को मोहे
मिश्री की मिठास वाणी में घुले॥
पेड़ों की छाया, आँचल का साया
आमों की बौर में पपीहे रमें।
बुलबुल की पुकार, पिक की पुकार
शीतल बयार में सौम्यता मिले॥
आज मन की आवाज सुनें।
हलचल से दूर शांति चुनें॥
इसीलिए तो कहते हैं कि हमारे देश की आत्मा गाँव ही हैं। जिनकी प्राकृतिक सुंदरता हमारे मन को भरसक अपनी ओर आकर्षित कर ही लेती है।
वो लोगों की सरलता, कोयल की सरसता तथा फूलों की सौम्यता अन्यत्र कहाँ? शायद कहीं नहीं। गाँव की बात हो और किसानों का जिक्र ना हो ऐसा संभव ही नहीं,
क्योंकि इन गाँवों में जो मेहनतकश किसान निवास करते हैं, वही देश के अन्नदाता हैं। वह जीवन भर मिट्टी से सोना उत्पन्न करने की तपस्या करते रहते हैं।
तपती हुई धूप, कड़ाके की ठंड तथा मूसलाधार बारिश भी उनको कर्तव्य पथ से हिला नहीं पाती हैं। प्रात: काल की प्रथम किरण के प्रसारित होते ही जाग जाते हैं और दिन भर कठिन परिश्रम करते हैं।
अभावग्रस्त जीवन की परिस्थितियों में भी वह संतोष धारण करते हैं। त्याग, तपस्या तथा परिश्रम का दूसरा नाम है किसान।
यदि हम यह कहें की देश की खुशहाली और संपन्नता किसानों के परिश्रम और त्याग पर निर्भर करती है, तो अतिशयोक्ति नहीं होगा।
No 4
भारतीय किसान
भोर भए से शाम ढले तक
काम करे वो काम करे।
खेतों और खलिहानों में
बागों और मैदानों में।
जेठ तपे या शीत गले
कर्मभूमि पर डटा रहे॥
भोर भए से शाम ढले तक
काम करे वो काम करे।
काम करे वो काम करे॥
बंजर धरती उपजाऊ कर
फसलों में नवजीवन भर।
खेतों में हरियाली फैलाकर
पीली चादर से सजाकर॥
भोर भए से शाम ढले तक
काम करे वो काम करे॥
स्वर्ण और रजत सम
अमृत अन्न कर।
बैलों के संग कांधे हल रख॥
अथक परिश्रम सम कर्तव्य करे
भोर भए से शाम ढले तक
काम करे वो काम करे॥
बाधाओं में कष्टों में
बीमारी मजबूरी में।
चुनौतियों भरे जीवन में
शांत रहे संतोष करे॥
भोर भए से शाम ढले तक
काम करे वो काम करे॥
ऐसे हैं हमारे भारतीय किसान सूर्य के उदित होते ही कर्मशीलता के भाव उनके अंतर्मन में उमड़ आते हैं। बिना रुके, बिना थके कर्म करना और लहलहाती फसलों को देख कर सारी थकान को भुला देना।
हमें इस बात का स्मरण रखना चाहिए की गाँव के विकास पर ही देश की संपन्नता निर्भर करती है, अत: किसानों की स्थिति को बेहतर करने के प्रयास करने चाहिए।
वर्तमान चुनौतीपूर्ण विषमताओं के चलते गाँव के स्वच्छ माहौल में भी जातीयता और सांप्रदायिकता का विष घुलने लगा है। शहरों की सीमा से लगे गाँव धीरे धीरे अपनी प्राकृतिक शोभा खोते जा रहे हैं।
यदि गाँवों को स्वर्ग बनाए रखना है तो गाँवों की सरलता व मंगलकारी स्वरूप को बनाए रखना आवश्यक है। गाँव पर कविता में संकलित कविताएं गाँवों के महत्व के साथ साथ उनकी उपयोगिता को भी उजागर करती हैं।
वृक्षों को लगाना, पर्यावरण स्वच्छ रखना, प्रदूषण से बचाना तथा गाँव की संस्कृति को संरक्षित करना हम भारतीयों का परम कर्तव्य है। थोड़े से स्वार्थ के लिए अपनी संपन्नता व समृद्धता को खोना कहा तक उचित है, विचार कीजिए।
इन कविताओं का संकलन एक ओर भारतीय ग्राम्य जीवन की उपयोगिता व महत्व को उजागर करता है तो दूसरी तरफ गाँवों की संस्कृति, संपन्नता और शांति को बनाए रखने का संदेश भी देता है।
इसी संदेश के साथ कविताओं का यह सफर समाप्त करती हूँ। आप सभी स्वस्थ रहें, मस्त रहें और सुरक्षित रहें नमस्कार।
आपकी लिखी रचना “पांच लिंकों का आनन्द में” शनिवार 18 सितम्बर 2021 को लिंक की जाएगी ….पर आप भी आइएगा … धन्यवाद! !