Shikshak Par Kavita
Shikshak Par Kavita शिक्षक दिवस के सुअवसर को अत्यंत सुरीला तथा सुहावना बनाने का माध्यम है। सभी को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं।
शिक्षक दिवस के अवसर पर मैं हिन्दी स्वरचित कविताएं साझा कर रही हूँ। आशा करती हूँ की ये कविताएं गुरु की महिमा का बखान करने में और जीवन में गुरु की आवश्यकता को स्पष्ट करने में पूर्णत: सक्षम रहेंगी।
तो आइए शिक्षक को सम्मान देते हुए प्रारंभ करते हैं कविताओं का यह सफर। शिक्षक शब्द शिक्षा से बना है। अत: जो शिक्षा दे तथा शिक्षित करे वही शिक्षक होता है।
शिक्षक ही शिक्षा प्रदान करके हमें आत्मनिर्भर बनाता है। शिक्षा से विहीन मनुष्य का समाज में सम्मान नही होता। शिक्षा ही हमें मनुष्यता की श्रेणी में स्थान दिलाती है।
शिक्षक का सम्मान करना हमारा परम कर्तव्य है। समय कितना ही क्यूँ न बदल जाए किन्तु शिक्षक और छात्र के अनोखे व पावन रिश्ते की सुगंध कम नही होनी चाहिए।
जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी को गीला करके उसे सुंदर और उपयोगी स्वरूप प्रदान करता है, उसी प्रकार शिक्षक अपने विद्यार्थियों को साक्षर, आत्मनिर्भर व आत्मविश्वासी बना कर सुंदर व सफल जीवन प्रदान करता है।
भारतीय शिक्षा का इतिहास अति प्राचीन है। वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक भारतीय शिक्षा निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर रही है।
समय के साथ साथ शिक्षा के स्वरूप में परिवर्तन अवश्य आया, किन्तु महत्व में नहीं। आइए काव्य पंक्तियों के माध्यम से शिक्षा के महत्व को जानने का प्रयास करें-
कविता (1)
शिक्षा
अंधकार की धुंध में जो प्रकाश किरण चमका दे।
अज्ञानता में जो ज्ञान ज्योति जला दे॥
असंभव को भी आत्मबल से जो संभव बना दे।
शिक्षा ही वह संबल है जो, मानव को मानवता सिखा दे।।
निराशा के क्षण में जो आशा का बिगुल बजा दे।
बुझी हुई आस में जो निर्मल विश्वास जगा दे।।
जीवन के अवरोधों में भी प्रशस्त राह करा दे।
शिक्षा ही वह अनमोल रत्न जो खरा सोना बना दे।।
नैतिक और मानव मूल्यों की जो पहचान करा दे।
सदाचार और संवेदना का जो पाठ पढ़ा दे।।
मनुष्य के विचारों में जो अमृत वाणी बरसा दे।
शिक्षा ही सच्चे अर्थों में वैश्वीकता सिखला दे।।
वैदिकशिक्षा ही जो ऋग्वेद की लहर चला दे।
बौद्धशिक्षा ही जो निर्वाण का मार्ग दिखा दे।।
अंतचक्षु को जाग्रत कर जो अपूर्व दर्शन करा दे।
शिक्षा ही वह प्रकाश पुंज जो जगमग संसार बना दे।।
सागर सम अगाध में जो बहुमूल्य रत्न छिपा दे।
अडिग हिमालय सा मन में अथाह मनोबल जगा दे।।
अनंत असीमता में पक्षी सम उन्मुक्त उड़ान भरा दे।
शिक्षा ही वह हौसला जो अनंत सोपान चढ़ा दे।।
व्यापार नही शिक्षा अमूल्य है कोई मोल न बोलो।
विद्या ही धन ऐसा जो खर्च करो और बो लो।।
व्यवहार, विचार, चरित्र और धर्म प्रबल प्रखर लो कर लो।
शिक्षा ही ज्ञान का सूरज किरणों को साँसों में भर लो।।
शिक्षा जीवन के लिए अतिआवश्यक होती है, तभी तो माँ के आँचल से निकल कर विद्या पाने हम स्कूल जाते हैं। माँ हमें जीवन की सीख देती है, संस्कारों से अवगत कराती है।
जीवन की पहली पाठशाला घर को और पहला गुरु माता पिता को ही माना जाता है। लेकिन एक समय आता है, जब हम स्कूल की कक्षा में बैठते हैं।
पुस्तकीय तथा व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करके आत्मनिर्भर बनने का प्रयास करते है और इस प्रयास में हमारा साथ देते हैं टीचर्स। टीचर अर्थात शिक्षक के सहयोग से हम पढ़ना,
लिखना तथा अपनी बात को दूसरों तक बेझिझक पहुंचाना सीख जाते हैं। लेकिन वो पहली बार स्कूल जाना 4-5 घंटों तक माँ से दूर रहना आसान नही होता।
कविता (2)
टीचर
कुछ बचपन की यादें हैं।
जब मैं पहले दिन स्कूल गई॥
मन डरता था सहमा सा सब
थामा हाथ किसी ने तब।
मिला सहारा टीचर का
तब टीचर का साथ पाया था॥
बैठी कक्षा में सोच रही
माँ का आँचल ही प्यारा था।
सब न्यारा जगत लगता था
हर पल माँ का ही साया था॥
कभी परीक्षा के डर से
जब डरती चुप हो छिप जाती।
टीचर ही थी जो चुपके से
मीठी सी टॉफी ले आती॥
कभी जब माँ की याद सताती
गोदी में बैठा लेती।
पेंसिल छील हमें पकड़ाती
क,ख,ग सिखला देती॥
दे प्यार और ममता वो
पूरा ही पाठ पढ़ा जाती।
कभी किस्से कहानी तो
कभी सीख नई सिखा जाती॥
माँ ने हमें ममता दी
टीचर ने अक्षर ज्ञान दिया।
माँ को शब्दों में गूँथ लिया
जब टीचर की मुस्कान मिली॥
पूरे मन के भावों से
भगवान उन्हें तब माना था।
शिक्षा,ज्ञान, बुद्धि,परिश्रम का
मोल तभी तो जाना था॥
आज शिक्षित हो साक्षर बन कर
आत्मविश्वास से खड़ी हुई।
ऋणी हूँ पहली टीचर की
जिससे अपनी पहचान मिली॥
कुछ बचपन की यादें हैं।
जब मैं पहले दिन स्कूल गई॥
गुरु शिष्य की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। गुरु और शिष्य का रिश्ता पवित्र, पावन, सौम्य और अटूट है। वैदिककाल हो या वर्तमानकाल गुरु के बिना आध्यात्मिक ज्ञान संभव नहीं।
गुरु ही हमें ज्ञान रूपी प्रकाश के दर्शन कराता है। हमारे मन से भय व भ्रम को समाप्त करता है, और आत्मविश्वास से भर देता है। ज्ञान के क्षेत्र में गुरु ही सर्वस्व है-

कविता (3)
गुरु पर कविता
गुरु का धैर्य धरती सा अम्बर सा विस्तार।
गुरु बिन मिले न जीवन में उत्तम सा आधार।।
जो माटी को अपने हाथों दे सुंदर आकार।
बना दे माटी की मूरत को पूजन हेतु संवार।।
गुरु बन दिया जल बाती सम फैला दे अलौकिक प्रकाश।
प्रेम भाव ममता रखे मात पिता सम प्यार।।
कभी डांट कर कभी प्यार से दे जीवन की सीख।
प्रतिकूल समय में भी चलने की सुझाए नई रीति।।
कदम कदम पर गिरने पर जो संबल बन जाए।
जीवन की भटकी राहों में मार्गदर्शन दे जाए।।
गुरु बिन मिले न मानव को ज्ञान पुंज प्रकाश।
गुरु बिन होए न मन से अज्ञानता का नाश।।
प्रत्तेक वर्ष 5 सितंबर को हम अपने शिक्षकों को सम्मान देने के लिए शिक्षक दिवस मनाते हैं। भारत में शिक्षक दिवस डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं।
शिक्षक ही छात्र के जीवन को आकार प्रदान करता है। आत्मनिर्भर बनने में सहयोग करता है। पुस्तकीय ज्ञान के साथ साथ व्यावहारिक ज्ञान भी देता है।
शिक्षक ही हमें शिक्षित करके समाज में सम्मानीय पद प्रदान करता है। ऐसे शिक्षक के सम्मान का एक दिन नही बल्कि जीवन का हर पल होना चाहिए।
कविता (4)
शिक्षक का महत्व
शिक्षक ही पुस्तक पढ़ा दे।
ज्ञान का जगमग दीप जला दे।।
शिक्षक ही जीना सिखला दे।
शिक्षक ही है वो जो हमसे
हमारी पहचान करा दे।।
कभी किताबों से पाठ पढ़ा कर।
कभी अपने अनुभव बतला कर।।
जीवन की विकट राहों को सरलता
से आसान बना दे।
हमको हमारी पहचान करा दे।।
कभी लक्ष्य का ज्ञान करा दे।
कभी बाह पकड़ राह दिखा दे।।
धन, बल, साधन से बढ़कर
ज्ञान का सागर समझा दे।
हमको हमारी पहचान करा दे।।
कभी थके मन को सहला दे।
कभी टूटे सपनों को सँवारे।।
जीवन की कड़ी धूप में
शीतलता सम छाया दे।
हमको हमारी पहचान करा दे।।
सभी भेद भाव तोड़ दे।
सच्चे मन से रिश्ता जोड़ दे।।
बौद्धिक ज्ञान विकास करा के
जीवन में सफलता दिला दे।
हमको हमारी पहचान करा दे।।
कभी मन की पीड़ा हर ले।
कभी विश्वास मन में भर दे।।
टूटे सारे बंधन भय के सिर
उठा कर चलना सिखला दे।
हमको हमारी पहचान करा दे।।
राधाकृष्णन की शिक्षा के प्रति विशेष रुचि थी। उनका मानना था कि बिना शिक्षा के व्यक्ति अपनी मंजिल तक नही पहुँच सकता। इन्होंने 40 वर्षों तक शिक्षा के क्षेत्र में कार्य किया।
तत्पश्चात भारत के उपराष्ट्रपति और फिर राष्ट्रपति पद हेतु चुने गए। शिक्षा के प्रति रुचि व समर्पण के आधार पर ही इनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
शिक्षक दिवस का दिन शिक्षकों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में दिए गए योगदान व सहयोग के प्रति छात्रों के माध्यम से दिया गया सम्मान है।
कविता (5)
शिक्षक दिवस
है आज अधिक सुनहरा सवेरा।
शिक्षक दिवस का आया है फेरा॥
इस पावन बेला में हर्षित होता है मन मेरा।
शिक्षक दिवस का आया है फेरा॥
जिनकी महिमा बया न होती।
जिनका व्यक्तित्व कहा न जाए॥
जिनसे ज्ञान पाकर सफल होता जीवन मेरा।
शिक्षक दिवस का आया है फेरा॥
जिनके उपदेशों में मिश्री।
जिनके वचनों में है अमृत॥
जिनकी वाणी करती रहती हर पल मार्गदर्शन मेरा।
शिक्षक दिवस का आया है फेरा॥
जिनका वंदन अभिनंदन बन।
जीवन में करता है उजाला॥
जिनके आगे नतमस्तक हो ऊंचा होता विश्वास मेरा।
शिक्षक दिवस का आया है फेरा॥
जिनके पद चिन्हों पर चलकर।
जिनसे मार्गदर्शन लेकर॥
होता जीवन में ज्ञान का सवेरा।
शिक्षक दिवस का आया है फेरा॥
वैदिक हो या आधुनिक समय।
शिक्षक का सम्मान करो॥
नतमस्तक हो उनके समक्ष
कोटि कोटि प्रणाम करो।
इनकी कृपा से ही दूर होता अज्ञानता का अंधेरा॥
शिक्षक दिवस का आया है फेरा॥
शिक्षक दिवस का आया है फेरा॥
बिना शिक्षक के एक व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त नही कर सकता। एक अच्छा शिक्षक अपने छात्र को जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करना सिखाता है।
जीवन पथ पर संकट के समय में भी हार माने बिना चलना सिखाता है और सफलता प्राप्ति की राह सुझाता है। शिक्षक ही ज्ञान पुंज के दिव्य दर्शन कराता है।
हम हमारे गुरुजनों के ऋण से कभी उऋण नही हो सकते। लेकिन अपने जीवन में उचित राह, उत्तम विचार और आदर्श सोच गृहण करके अपने शिक्षकों का सम्मान अवश्य कर सकते हैं।
आज के युवा छात्रों को स्वयं सोचना होगा क्या शिक्षा अर्जन के बिना हम सभ्य, सफल और वैश्विक बन सकते हैं? स्मार्ट सिटीजन कहलाये जा सकता हैं? शायद नहीं।
तो जो हमें समाज में सम्मान दिलाता है, उसका सम्मान करना हमारे लिए सर्वोपरि होना चाहिए। शिक्षकों को भी अपने पद की गरिमा बनाए रख कर छात्रों की गलतियों में सुधार करने का प्रयास करना चाहिए।
सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। सभी स्वस्थ रहें, मस्त रहें और सुरक्षित रहें नमस्कार।