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Sumitra nandan Pant ka Jeevan Parichay | 1 Best जीवन परिचय

Sumitra nandan Pant ka Jeevan Parichay
Sumitra nandan Pant ka Jeevan Parichay

Sumitra nandan Pant ka Jeevan Parichay हिन्दी साहित्य में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। आधुनिक छायावादी कवियों में पंत जी अपनी कोमल भावनाओं और मधुरतम भाषा के कारण विशेष स्थान के अधिकारी हैं।

पंत की कविता में छायावाद, रहस्यवाद तथा प्रगतिवाद तीनों समाहित हैं। सौन्दर्य और प्रेम के कवि के रूप में वह प्रकृति की सुंदर छवि का चित्रण अत्यधिक ललित भाषा में करते हैं।

पंत जी का प्रकृति चित्रण आह्लादकारी अनुभूतियों का खजाना है। भावना के क्षेत्र में कल्पना ही पंत की कविता की विशेषता है।

उत्कृष्ट कवि के रूप में वे सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, जयशंकर प्रसाद तथा महादेवी वर्मा के साथ छायावाद के प्रमुख स्तम्भ में पंत जी सुशोभित होते हैं।

हिन्दी कविता में छायावाद युग द्विवेदी युग के उपरान्त आया। द्विवेदी युग की कविता नीरस, उपदेशात्मक और इतिवृत्तात्मक थी।

छायावाद में इसके विरूद्ध विद्रोह करते हुए भावान्मेश युक्त कविता लिखी गई। छायावादी काव्य प्राचीन संस्कृति साहित्य, मध्यकालीन हिन्दी साहित्य से भी प्रभावित हुई।

छायावादी युग के प्रतिनिधि कवि – जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, सुमित्रानन्दन पंत, महादेवी वर्मा हैं इन्हें छायावाद के चार स्तम्भ भी कहा गया।

छायावाद की कालावधि सन् 1917 से 1936 तक मानी गई है। रामचन्द्र शुक्ल जी ने छायावाद का प्रारम्भ 1918 ईस्वी से माना है,

क्योकि छायावाद के प्रमुख कवियों पंत, प्रसाद, निराला ने अपनी रचनाए इसी वर्ष के आस – पास लिखनी प्रारम्भ की थी।

आज के लेख में हम छायावाद के सुकुमार, प्रसिद्ध, उत्कृष्ट तथा प्रतिभासंपन्न लेखक सुमित्रानंदन पंत जी के जीवन परिचय का ज्ञान प्राप्त करेंगे।

सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय

प्रकृति के सुकुमार कवि श्री सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म अल्मोड़ा जिले के रमणीक ग्राम कौसानी में संवत् 1958 (ई. 1900) की 20 मई को प्रात: काल में हुआ था।

कौसानी प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत मनोहर स्थल है। यह स्थान अल्मोड़ा से 32 मील दूर समुद्र के ताल से सात हजार फुट की ऊँचाई पर बसा हुआ है।

पंत जी की माता का नाम श्रीमती सरस्वती देवी तथा पिता का नाम पंडित गंगादत्त पंत था। पंत जी को माता का वात्सल्य प्रेम नही प्राप्त हुआ था,

क्योंकि पंत जी को जन्म देते ही वात्सल्यमयी माँ सदैव के लिए उन्हें छोड़कर स्वर्ग सिधार गई थी। अत: पंत जी ने माँ का प्यार भी प्रकृति से ही पाया है।

“प्रकृति की गोद में छिप क्रीडाप्रिय, तृण तरु की बातें सुनता मन।

विहंगों के पंख पर करता, पार नीलिमा से छाया मन।।“

यदि समीक्षात्मक दृष्टि से ही देखा जाए तो हम पाएंगे कि केवल माँ का ही नही सखा, शिक्षक और प्रेमिका का प्रतिरूप भी कवि को प्रकृति में ही मिला –

“माँ से बढ़कर रही धात्रि, तू बचपन में मेरे हित।

धात्रि कथा रुपक भर तूने किया जनक बन पोषण।

मातृहीन बालक के सिर पर वरद हस्तधर गोपन।“

Sumitra nandan Pant ka Jeevan Parichay
पारिवारिक जीवन

सुमित्रानंदन पंत के पिता पंडित गंगादत्त जी पंत जमीदार होने के साथ ही चाय के बगीचे में मैंनेजर का कार्य भी करते थे।

कुछ दिनों तक कौसानी राज्य के कोषाध्यक्ष भी रहे थे। पंत जी का प्रारम्भिक जीवन प्रकृति के अञ्चल में ही बीता और अपने जीवन का सबकुछ उन्होंने प्रकृति से ही गृहण किया।

प्रकृति ने पंत जी को पारिवारिक प्रेम भी प्रदान किया तथा काव्य जीवन पर भी सुरम्य प्रकृति का अत्यंत प्रभाव पड़ा। पंत जी ने स्वयं ही उल्लेख किया है –

“अपने काव्य जीवन पर दृष्टिपात करने पर मेरे भीतर वह बात स्पष्ट हो उठती है कि मेरे किशोर प्राण मूक कवि को बाहर लाने का सर्वाधिक श्रेय मेरी जन्मभूमि के उस नैसर्गिक सौन्दर्य को है जिसकी गोद में पलकर मैं बड़ा हुआ हूँ।

मेरे भीतर मेरे संस्कार अवश्य रहे होंगे,जिन्होंने मुझे कवि कर्म करने की प्रेरणा दी, किन्तु उस प्रेरणा के विकास के लिए, स्वप्नों के पालने की रचना पर्वत प्रदेश की दिगंत व्यापी प्रकृति शोभा ने ही की,

जिसने छुटपन से ही मुझे अपने रुपहले एकांत में एकाग्र तन्मयता के रश्मिदोल में झुलाया, रिझाया तथा कोमल कंठ बन पांखियों के साथ बोलना – कुहकना सिखाया।“

अत: स्पष्ट है की पंत जी को पारिवारिक सुख तथा काव्य की प्रेरणा प्रकृति की गोद से ही प्राप्त हुई।

बाल्यकाल

बचपन में सुमित्रानंदन पंत का नाम गुसाईदत्त था। उनका जन्म हरगिरी बाबा नामक गोस्वामी के प्रताप से हुआ था, इसीलिए उनके पिता ने उनका नाम गुसाई द्वारा दिया हुआ अर्थात गुसाईदत्त रखा।

जब पंत जी अल्मोड़ा में अध्ययन के लिए आए तब आपने स्वयं अपना नाम गुसाईदत्त से परिवर्तित करके सुमित्रानंदन पंत रख लिया।

अपने नाम परिवर्तन के विषय में पंत जी ने अत्यधिक मृदुल कल्पना प्रस्तुत की है –

“मैं घर में छोटा भाई, इसीलिए मेरे मन ने अपना नाम सुमित्रानंदन रखकर संतोष प्रकट किया था। लक्ष्मण जी के लिए राम से छोटे होने के कारण छुटपन से ही मेरी कुछ धारणा थी कि वह बड़े ही सुंदर और सुकुमार थे।

उनका लालन – पालन बड़े प्यार से हुआ था। अपने व्यक्तित्व का मैने छुटपन में उनके साथ तादात्म्य कर लिया था। यह भी मेरी समझ में “सुमित्रानंदन पंत चुनने का कारण रहा।“

पंत जी का बाल्यकाल अपनी दादी और बुआ के घर हुआ, क्योंकि पंत जी की माँ का स्वर्गवास हो चुका था। पंत जी अपने क्षणों की प्रकृति श्री के अवलोकन में ही व्यतीत कर देते थे।

प्रकृति के प्रति जो यह सम्मोहन का भाव, बाल्यकाल में प्रारंभ हुआ था, वह जीवन पर्यंत चलता रहा। इसीलिए पंत जी ने अपने जन्म स्थान के बारे में इसप्रकार लिखा है –

“छुटपन से विचरा हूँ मैं इन धूप छाँव के शिखरों पर,

दूर, क्षितिज पर हिल्लोलित सी दृष्टिपटी पर निस्वर।

हल्की, गहरी छायाओं में रेखांकित से पर्वत,

नील, बैगनी, कपिश, पीत हरिताभ वर्ण श्री छहरा।

मोहित अंतर में भर देते आदिम विस्मय गहरा,

अंतरिक्ष विस्फारित नयनों को अपलक रख तद्वत।।“

शिक्षा दीक्षा

सुमित्रानंदन पंत जी की शिक्षा पाँच साल की उम्र में प्रारंभ हुई, और सात वर्ष की उम्र में इन्हें कौसानी की पाठशाला में भर्ती करा दिया गया।

तत्पश्चात आप ने अल्मोड़ा राजकीय स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। सन् 1918 में जयनारायण स्कूल व वाराणसी स्कूल से दसवी की परीक्षा उत्तीर्ण की।

सन् 1919 में आप प्रयाग आए और म्योर सेंटर कॉलेज में नाम लिखवाया और हिन्दू बोर्डिंग हाउस में रहने लगे।

इसी समय पंत जी ने ‘हार’ नामक उपन्यास लिखा तथा ‘वीणा’ में संकलित कविताओं का सृजन हुआ। 

छात्रावास में प्रवेश करने पर पंत ने एक कविता लिखी थी, जिससे उनके भावी कवि जीवन लि झाँकी उपलब्ध होती है –

‘इस विस्तृत होटल में

मैं सुनती हूँ

मेरा भी सखि छोटा सा रूम

जहां मेरी आकांक्षा सूम

गूँजती है प्रतिपल को तुम’

सन् 1921 में असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर इन्होंने इन्टर करने के पहले ही शिक्षा क्रम त्याग दिया।

शिक्षा अपूर्ण रह जाने के कारण पंत जी को जीवन में बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ा। एक प्रकार से उनका पूरा जीवन ही संघर्षपूर्ण रहा।

परिवार से उन्हें कोई सहायता नही मिली, उन्होंने आजीवन एकाकी जीवन बिताया।

आर्थिक जीवन

नौकरी के लिए अवसर कम थे, इन सब कारणों से वे कई वर्षों तक कुछ विशिक्ष व्यक्तियों के साथ रहे। उन प्रमुख व्यक्तियों में –

कुँवर सुरेशसिंह, नरेंद्र शर्मा, हरिवंश राय बच्चन, उदयशंकर तथा कृष्णनन्द पाण्डेय थे। पंत जी जब भी प्रयाग जाते तो रामचंद्र टंडन के घर ठहरते थे।

साथ ही कुछ महान व्यक्तियों से भी इसी प्रकार प्रभावित हुए, जिनमें प्रमुख हैं – श्री रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, श्री अरविन्द तथा कार्ल माकर्स।

प्रयाग निवास के दिनों में प्रो. शिवाधार पांडे तथा श्रीधर पाठक ने आपको प्रोत्साहित किया।

साहित्यिक जीवन

सुमित्रानंदन पंत जी का साहित्यिक जीवन सन् 1927 से प्रारंभ हुआ था। पहली कविता ‘तंबाकू का धुआ’ ‘अल्मोड़ा अखबार’ में प्रकाशित हुई थी।

सन् 1950 ई. में पंत जी रेडियो विभाग में हिन्दी चीफ प्रोड्यूसर बनाए गए। सन् 1961 में भरत सरकार ने पद्यभूषण की उपाधि से इन्हें सम्मानित किया।

इसके बाद सुमित्रानंदन पंत इंग्लैंड, रूस, फ्रांस तथा अन्य यूरोपीय देशों की यात्राएं की। ‘कला और बूढ़ा चाँद’ नामक काव्य कृति पर साहित्य ऐकेडमी ने 5000 रु. का पुरुस्कार पंत जी को दिया।

सन् 1969 ई. में चिदम्बरा नामक काव्य कृति पर ज्ञान पीठ से 1,00,000 रु. का पुरुस्कार प्राप्त हुआ।

साहित्य सर्जना

काव्य – वीणा, ग्रन्थि, पल्लव, गुंजन, युगवाणी, ग्राम्यस्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, युगांतर, उत्तरा, रजतशिखर, शिल्पी, अतिमा सौवर्ण वाणी, कला और बूढ़ा चाँद’, लोकायतन, पौ फटने से पूर्व, पतझर एक भाव क्रांति,

उच्छवास, युगपथ, पल्लविनी, मधु ज्वाल, रश्मिबंध, अभिषेकिता, किरणवीणा स्वर्णिमरथचक्र, चिदम्बरा, तारापथ आदि हैं।

गीत काव्य – परी क्रीडा रानी।

उपन्यास – हार।

कहानियाँ – पाँच कहानियाँ।

नाटक – ज्योत्सना, युगपुरुष, छाया, मानसी।

आलोचना – छायावादी पुनर्मूल्यांकन।

उपसंहार

उपरोक्त वर्णित लेख के माध्यम से सुमित्रानंदन पंत जी के जीवन की सम्पूर्ण झाँकी स्पष्ट हो जाती है।

प्रस्तुत विषय 9, 10, 11, और 12 क्लास के विद्यार्थियों के लिए तथा प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

प्रस्तुत लेख पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य प्रदान करें। प्रतियोगी परीक्षा संबंधी हिन्दी ग्रामर के पोस्ट पढ़ने के लिए तथा प्रतियोगी परीक्षाओं की जानकारी प्राप्त करने के लिए

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